किस युग में तांबे की खोज हुई थी? जिसका यूज़ हम आज करते है
तांबे को मनुष्यों द्वारा उपयोग किए जाने वाली सबसे पहली धातु माना जाता है। इसकी शुरुआती खोज और उपयोग का मुख्य कारण यह है कि तांबे अपेक्षाकृत शुद्ध रूपों में स्वाभाविक रूप से पाए जाते हैं। वर्तमान में विश्व में तांबे का उत्पादन और उपभोग तीसरे स्थान पर होता है, इसमें पहले स्थान पर लोहा और दूसरे स्थान पर एल्यूमीनियम है। कांस्य युग की शुरुआत पाषाण युग के बाद हुई। पहले के मानव अपने औजार और उपकरण पत्थरों से बनाते थे परंतु जब उन्हें तांबे का ज्ञान हुआ तो मानव ने इसका उपयोग करना सिखा। इसका इस्तेमाल दस सहस्राब्दी से होता आ रहा है।
प्राचीन काल में सोने और चांदी जैसे धातुएं भी अस्तित्व में थी परंतु इनकी कम उपलब्ध के कारण इनका इतना व्यापक उपयोग नहीं हो सका जितना की तांबे का हुआ। हालांकि यह पत्थर के समान कठोर नहीं था, फिर भी इसका उपयोग व्यापक रूप से हुआ। क्योंकि इसे आसानी से मोड़ा जा सकता था और इससे काम करना भी आसान था इसलिये मनुष्य ने तांबे के उपकरण बनाना शुरू किया। इस युग को सभ्यता का उद्गम स्थल भी माना जाता है। इस युग में मनुष्य ने शहरी सभ्यताओं में बसना शुरू कर दिया था और दुनिया भर में पौराणिक सभ्यताओं का विकास हुआ।
कहा जाता है कि विश्व के सात अजूबों में से एक मिस्र का तीसरी सहस्राब्दी ई.पू. पुराना फराओ खुफु का पिरामिड है, फराओ का मकबरा 2300000 पत्थर के ब्लॉक से बनाया गया था, जिसका वजन 2.5 टन था और इन पत्थरों को तांबे के औजारों द्वारा फिनिशिंग दी गई थी। समय के साथ धीरे-धीरे लोगों ने सीखा कि अयस्कों से तांबा कैसे निकाला जाता है। धीरे-धीरे लोगों ने सीखा कि अयस्कों से तांबा कैसे निकाला जाता है। शायद ये बात अधिकांश लोग नही जानते है कि मैकेलाईट तांबे का एक अयस्क है, जिसके साथ सभ्यताओं का इतिहास अविभाज्य रूप से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है की सिद्ध साइप्रस द्वीप पर तांबे की खदानें थीं, जिस कारण, तांबे (कॉपर) को अपना नाम मिला।
इसके बाद तांबे के इतिहास में अगला पडाव आया जहां जस्ता के साथ तांबे के उत्कृष्ट मिश्र धातु का उपयोग आभूषणों और कीमती वस्तुओं के निर्माण के लिए किया गया था। इससे कांस्य युग की शुरूआत हुई। प्राचीन मिस्रवासियों के पास ज्वैलर्स द्वारा निर्मित कांस्य दर्पणों को महिलाओं को उपहार स्वरूप भेट किया जाता था। इसके अलावा जब मिस्र के थेब्स में एक प्राचीन कब्र खोली गई थी तो वहां से कुछ पांडुलिपियां मिलीं, जिनमें तांबे से सोना बनाने के रहस्यों से संबंधित जानकारी थी। दरअसल तांबे में जस्ता को मिलाने पर वो पीतल बन जाती थी जो सोने जैसा दिखता था। भारतीय सभ्यताओं, बेबीलोन और असीरिया तथा रोमन और यूनानी साम्राज्य में भी पाये जाते है। समय के साथ साथ इसकी मांग बढ़ती गई, और औद्योगिक मांग को पूरा करने के लिये इसका खनन भी बढ़ा। ट्रांस एशिया, साइबेरिया और अल्ताई के उत्खनन स्थलों में तांबे के चाकू, तीर, कांस्य ढाल, हेलमेट और 8वीं – 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व के अन्य औजार मिलते हैं। लेकिन औद्योगिक तौर पर तांबा को गलाने का पहला प्रयास केवल 8वीं शताब्दी की शुरुआत में किया गया था, जब तांबे के अयस्क की खोज रूस के यूरोपीय भाग के उत्तर में की गई थी।
भारत में ऐतिहासिक रूप से तांबे का खनन 2000 वर्ष से अधिक समय से होता आ रहा है। लेकिन औद्योगिक मांग को पूरा करने के लिए इसका उत्पादन 1960 के मध्य से शुरू किया गया था। विश्व के कुल तांबा उत्पादन में भारत की केवल 2 प्रतिशत की हिस्सेदारी है, जबकि परिष्कृत तांबे के उत्पादन का लगभग 4% हिस्सेदार है तथा परिष्कृत तांबे की खपत में भारत 8वें स्थान पर है। भारत का संभावित आरक्षित क्षेत्र 60,000 किमी2 तक सीमित है, जिसमें 20,000 किमी2 क्षेत्र अन्वेषण के अधीन है। आज भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और जर्मनी के साथ तांबा उत्पादन में बड़े आयातकों में से एक है।
यहां पर खनन ओपनकास्ट (Opencast) और भूमिगत दोनों तरीकों से किया जाता है। देश में झारखण्ड, मध्य प्रदेश तथा राजस्थान में ताँबे की प्रमुख खदानें विद्यमान हैं। राजस्थान का खेतड़ी तांबे की बेल्ट, काफी पुराने समय से ही ताँबा उत्खनन का प्रमुख क्षेत्र रहा है। झारखण्ड राज्य की सिंहभूमि तांबे की बेल्ट ताँबा तथा मध्य प्रदेश में मलाजखंड तांबे की बेल्ट भी उत्खनन की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है