किन प्रसिद्ध विदेशी हस्तियो ने हिन्दू धर्म अपना लिया है? जानिए उनका नाम

सनातन या हिंदू होने को हम केवल धर्म नहीं जीवन शैली भी कह सकते हैं और इसकी सुंदर बात यह है कि इसमें कोई धर्मान्तरण नहीं होता हैं। हम सदियों से धर्मांतरण जैसी किसी व्यवस्था में विश्वास नहीं रखते हैं और इसके लिए कोई अनुष्ठान या विधि भी हिंदू धर्म में मूलतः नहीं है क्योंकि धर्म हमारे लिए किसी एक पैग़म्बर, एक किताब या एक पूजा पद्धति मात्र में विश्वास नहीं है। हिंदुओ में हजारों प्रकार के उपासना सम्बन्धी विश्वास है और नित नए भी समय के साथ बनते रहें हैं। विविध प्रकार के व्यक्तित्वों के लिए विभिन्न प्रकार के विश्वास और व्यवस्थाएं रही हैं। बौद्धिक, भावुक, कर्मठ, कलात्मक, दार्शनिक, रहस्यदर्शी, शंकालु सभी प्रकार के लोगों के लिए कुछ अलग मत और पथ हमारे पास हैं।

धर्मान्तरण तो एक बहुत ही नयी व्यवस्था थी, जो नए नए उपजे धर्मों ने ( विश्व सभ्यता की विशाल समय धारा में 500 -600 साल नया ही कहलाएगा) अपने अनुयायियों की संख्या बढ़ाने हेतु प्रारम्भ करी थी, वे लोग उस समय संख्या की कमी से ग्रस्त थे, तो असुरक्षा की भावना से भी ग्रस्त हो गए। इसलिए इनके ग्रंथों में धर्मांतरण पर बहुत बल दिया गया और अन्यों को अपने अस्तित्व के लिए खतरे के रूप में देखा गया। योजनाबद्ध तरीके व आक्रामक शैली से और द्रुत गति से धर्मान्तरण पर कार्य किया गया और इसका नतीजा भी हमारे सामने हैं।

एक समय पूरे विश्व में अपने वैविध्य के साथ हजारों धर्म या पथ थे। इंका, माया, सुमेरियन, प्राचीन मिस्र, यूनानी, अफ्रीकी , एशियन सभ्यताओं को गिने तो 5000 से अधिक मत या धर्म हमारे पास पूरे विश्व में थे । अगर विश्व को हम एक बगीचे के रूप में देखे तो यह कह सकते हैं कि हजारों प्रकार के फूल सभ्यता के बगीचे में खिल रहें थे, पर अब तो इन नीतियों के कारण लगता है कि दो प्रकार की फसलों की सब ओर खेती सी की जा रही हैं।

अब बात प्रश्न की करते हैं भारत में धर्म शब्द से तात्पर्य धारण किये जाने वाले स्वभाव, जीवन शैली और कर्त्तव्य हैं। जैसे राजधर्म, सैनिक धर्म, पतिधर्म, देश धर्म, कालधर्म आदि।

हिन्दू धर्म से तात्पर्य एक ऐसी जीवन शैली और संस्कृति से है जो व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण, प्रकृति के लिए आदर और संरक्षण के भाव , जीव मात्र की सेवा, विवेक बोध का जागरण, अच्छे अंतर्मन और व्यक्तित्व के विकास , आधुनिकता और पुरातनता के तालमेल, आनन्द व आद्यात्म की प्राप्ति को एकसाथ उपलब्ध कराने की कोशिश करती हैं।

हिंदू धर्म एक खुली हुई जीवन व्यवस्था हैं, जो धर्मांतरण के लिए तो कभी नहीं कहती है पर जो भी इसे अपने जीवन में आदर्श व व्यवस्था के रूप में अपनाना चाहे, उसके लिए यह बिना किसी शर्त, बन्धन और अनुबंध के शुद्ध प्रेम से अपनी बाहें खोलें हुए तैयार हैं। जो इसे चाहे जिस रूप में अपनाएं, व जितना अपनाएं। इसकी ज्ञान व भाव संपदा इतनी अधिक हैं कि, हर व्यक्ति अपनी क्षमता भर झोली और अंजुलि भर सकता है।

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