करणी माता मंदिर – जहां चूहों का झूठा प्रसाद खाते हैं लोग

वेद संसार में आज हम आपको बताते हैं कि आखीर मंदिर में कहां से आए इतने सारे चूहे और इनके झूठे प्रसाद को खाने से भी भक्त क्यों नहीं होते हैं बीमार –

चूहों का मंदिर
बीकानेर से करीब 30 किमी. दूर देशनोक में स्थित इस मंदिर को चूहों वाली माता, चूहों का मंदिर और मूषक मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर चूहों को काबा कहा जाता है। मंदिर में इतने सारे चूहें हैं कि इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि मंदिर में आप पैर को ऊपर उठाकर नहीं चल सकते, बल्कि आपको पैर घसीटकर चलना होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि पैर उठाकर चलने से कोई काबा पैर के नीचे ना आएं, इसे अशुभ माना जाता है।

जगदंबा माता का अवतार
बता दें कि मां करणी को जगदंबा माता का अवतार माना जाता है। कहा जाता है कि इनका जन्म 1387 में एक चारण परिवार में हुआ था और बचपन का नाम रिघुबाई था। इनका विवाह साठिका गांव के किपोजी चारण से हुई थी, लेकिन सांसरिक जीवन में मन ऊबने के बाद उन्होंने किपोजी चारण की शादी अपनी छोटी बहन गुलाब से करवाकर खुद माता की भक्ति और लोगों की सेवा में लीन हो गई।

इष्ट देवी की पूजा
लोगों की मदद और चमत्कारिक शक्तियों के कारण स्थाबनीय लोग उन्हें करणी माता के नाम से उनका पूजन करने लगे। अभी जहां मंदिर है, वहां एक गुफा में करणी माता अपनी इष्ट देवी की पूजा किया करती थी। कहा जाता है माता 151 वर्ष तक जीवित रहीं। उनके ज्योतिर्लिन होने के बाद भक्तों ने वहां पर उनकी मूर्ति की स्थाहपना की और पूजा शुरू कर दी।

करणी माता की संतान
इस मंदिर में काले चूहों के सथ-साथ कुछ सफेद चूहे भी हैं, जिन्हे ज्याोदा पवित्र माना जाता है। कहते हैं कि एक बार करणी माता की संतान उनके पति और उनकी बहन का पुत्र लक्ष्मण कपिल सरोवर में डूब कर मर गया। जब मां को यह बात पता चली तो उन्होंने मृत्यु के देवता यम से लक्ष्मण को जीवित करने की काफी प्रार्थना की, जिसके बाद यमराज ने विवश होकर उसे चूहे के रूप में पुनर्जीवित किया।

चूहों की एक खास विशेषता
यही नहीं, बीकानेर के लोक गीतों में इन चूहों की एक अलग कहानी बताई गई है। उनसे अनुसार एक बार बीस हजार सैनिकों की एक टुकड़ी देशनोक पर आक्रमण करने आई, जिन्हें माता ने अपने प्रताप से चूहा बना दिया। इस चूहों की एक खास विशेषता यह भी है कि सुबह पांच बजे मंदिर में होने वाली मंगला आरती और शाम सात बजे संध्याव आरती के समय चूहे अपने बिलों से बाहर निकल जाते हैं।

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