ऐसा डाकू कौन था जो लोगों की उंगलियों को काट कर उससे माला बनाकर पहनता था? जानिए उसका नाम

श्रावस्ती के अंगुलिमाल को हम एक डाकू के रूप में ही जानते है। डाकू भी ऐसा जो लोगों को मार कर उनकी उंगलिया काट कर उसकी माला पहनता था। भगवान बुद्ध पर भी हमला किया। आज भी उसकी कहानियां श्रावस्ती स्थित उसकी गुफा से गुंजती है, लेकिन वास्तव में अंगुलिमाल कोई डाकू नहीं था, बल्कि एक भटका हुआ विद्वान ब्राह्राण था। जिसे उसके ही गुरू पत्नी की वासना ने बना दिया हत्यारा।

श्रावस्ती में उस समय राजा प्रसेनजीत का राज्य था। इसी नगर के उत्तर की ओर कुछ ही दूरी पर एक गरीब ब्राह्णाणी अपने माणवक लोक दर्शनीय नामक पुत्र के साथ रहती थी। उस बालक के जब शिक्षा का समय आया तो उसकी मां ने इसी राज्य के ग्राम हलहसे के ही निवासी आचार्य मणिभद्र जो चारों वेदों के ज्ञाता थे, उनके पास वेद का अध्ययन करने के लिए भेजा। कुछ दिन विद्याध्यन कराने के बाद एक दिन आचार्य मणिभद्र अपने शिष्य माणवक लोक दर्शनीय से गृह रक्षा करने के लिए कहकर बाहर चले गये।

आचार्य के घर से बाहर चले जाने पर उनकी युवा पत्नी जो पहले से ही मणिवाक लोक दर्शनीय से म नही मन में प्रेम करती थी। वह अपने कपडे व जेवर को उतार कर नग्न अवस्था में उसके पास गयी। गुरू पत्नी को नग्न अवस्था में सामने देख कर माणवक ने कहा कि आप मेरी मां की तरह है। इसलिए आप अपने कपड़े पहन कर अंदर चली जाए। लेकिन काम वासना से पीडित गुरु पत्नी ने अपने ही नाखून से अपने शरीर को नोंच डाला। इसके साथ ही अपने आप को नग्न अवस्था में ही घर के एक खंभे से बांध लिया।

जब आचार्य राजमहल से घर वापस आये तो अपनी पत्नी को यह हालत देखकर रस्सी को खोलकर अपनी पत्नी से इसका कारण पूछा। इस पर गुरु पत्नी ने कहा आपके शिष्य माणवक सर्वलोक दर्शनीय ने मुझसे गलत कार्य करने के लिए कहा और मैने इनकार किया, तो उसने मुझे जबरदस्ती खंभे से बांध दिया। आचार्य मणिभद्र दुखी हुए और कहा कि दुरात्मा, तुमने गुरु पत्नी से अनुचित व्यवहार कर महा अपराध किया है। अब तुममें ब्राह्मण पुत्र कहलाने की योग्यता नहीं है। इसलिए जाओ और एक हजार व्यक्तियों की हत्या कर डालो, तब तुम्हारे सब पाप धुल जायंगे।

गुरु मणिभद्र के आदेश पर वह श्रावस्ती के जंगल में जाकर लोगों की हत्याएं करने लगा। यही नहीं आचार्य मणिभद्र के कहने पर ही वह जिनकी हत्याए करता था उनकी उंगलिया काट कर उसको मालाओं में पिरो लेता था, ताकि उगलियां गायब न हो। आचार्य मणिभद्र ने ही उसे अंगुलिमाल का नाम दिया था। उसने गुरु के ही कहने पर 99 लोगों की हत्याएं की थी, लेकिन लूटपाट किसी के साथ नहीं किया था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *