एक सन्यासी और राजा की कहानी ओशो की जुबानी

एक संन्यासी सारी दुनिया की यात्रा करके भारत वापस लौटा था | एक छोटी सी रियासत में मेहमान हुआ उस रियासत के राजा ने सन्यासी को जाकर कहा : स्वामी जी मै एक प्रशन बीस वर्षो से निरंतर पूछ रहा हूँ | कोई उत्तर नहीं मिलता | क्या आप मुझे उत्तर देंगे ? स्वामी ने कहा : निश्चित दूंगा | राजा ने कहा : मै ईश्वर से मिलना चाहता हूँ | और पहले ही बता दूं गीता के श्लोक पढ़ के समझाने की कोशिश न करे | वह मैंने काफी सुन लिया |

उपनिषद और वेदो की बाते सुनने की मेरी कोई इच्छा नहीं है, वे सब मैंने पढ़ लिए है | मै तो सीधा मिलना चाहता हूं | मिलवा सकते है तो सीधा है कह दे अगर न मिलवा सकते है तो ना कह दे मै वापिस चला जाऊंगा | उस सन्यासी ने कहा अभी मिलना चाहते है या थोड़ी देर ठहर कर ? इस बात की आशा भी ना थी की राजा थोड़ा चिंतित हुआ | राजा ने सोचा की सन्यासी मेरी बात समझा नहीं | राजा ने सन्यासी से फिर कहा की में परमात्मा से मिलने की बात कह रहा हु, किसी ईश्वर नाम के आदमी की नहीं | उस सन्यासी ने कहा : जजमान, भूल-चूक की कोई गुंजाईश नहीं है मै तो चौबीस घंटे परमात्मा से मिलाने का धंधा करता हु | अभी मिलना है या थोड़ी देर रुक सकते है सीधा जवाब दे |

राजा को भरोशा नहीं हो रहा था की कोई परमात्मा से मिलवाने की इतनी जल्दी करेगा |

राजा ने हिम्मत की और कहा अभी मिला दीजिये सन्यासी ने कहा की इस छोटे से कागज पर अपना पता लिख दो ताकि में भगवान के पास भेज दू की आप कौन है | राजा ने कहा यह तो ठीक है मै भी जब किसी से मिलता हु तो पता पूछ लेता हूँ | राजा ने अपना नाम लिखा, महल का नाम अपना पूरा परिचय, उपाधियाँ और सन्यासी को दे दिया | वह सन्यासी बोलै महाशय ये जो बाते है बिलकुल झूठ है और असत्य मालूम होती है जो आपने कागज में लिखी है | वह राजा बोला : मै पहले ही शक में पड़ गया था की आप आदमी कुछ गड़बड़ हो भगवान से मिलने की बात इतनी आसान ! यह मेरा ही परिचय है मै हु राजा इस राज्य का |

यह मेरा नाम है |उस सन्यासी ने कहा : मित्र, अगर तुम्हारा नाम बदल दे तो क्या तुम बदल जाओगे ? तुम्हारा अ नाम से ब कर दें तो क्या फर्क पड़ जायेगा कुछ ? उस राजा ने कहा : नहीं, नाम के बदलने से मै क्यों बदलूंगा ? नाम, नाम है मैं मै हूं | तो सन्यासी ने कहा की नाम तुम्हारा परिचय नहीं है, क्योंकि तुम उसके बदलने से बदलते नहीं हो | आज तुम राजा हो कल भिखारी हो जाओगे तो बदल जाओगे ? उस राजा ने कहा : नहीं, राज्य चला जायेगा, भिखारी हो जाऊंगा, लेकिन मै तो मै रहूँगा मै थोड़ी बदलूंगा | मै तो जो हूं राजा होकर जो हूं भिखारी होकर भी वही रहूँगा न होगा मकान, न होगा राज्य, न होगा धन संपत्ति, लेकिन मै ? मै तो वही रहूँगा जो हूं | तो सन्यासी ने कहा : तय हो गई दूसरी बात की राज्य तुम्हारा परिचय नहीं है, क्योंकि राज्य छीन भी जाये तो तुम बदले नहीं | तुम्हारी उम्र कितनी है ? चालीस वर्ष |

सन्यासी ने कहां : तो पचास वर्ष के होकर तुम दूसरे हो जाओगे ? बीस वर्ष के थे जब दूसरे थे ? बच्चे थे तब दूसरे थे ? जवान जब हो गए तब दूसरे हो गए ? बूढ़े जब हो जाओगे तो दूसरे हो जाओगे ? उस राजा ने कहा : नहीं, उम्र बदलती है शरीर बदलता है | लेकिन मै तो जो बचपन में था वही हूँ और आगे भी यही रहूँगा | उस सन्यासी ने कहा उम्र भी तुम्हारा परिचय न रहा, शरीर भी तुम्हारा परिचय न रहा | फिर तुम कौन हो ? उसे लिख दो तो पहुंचा दूँ भगवान् के पास, यह कोई भी परिचय तुम्हारा नहीं है |

राजा बोला : तब तो बड़ी कठनाई हो गई | उसे तो मै भी नहीं जानता फिर ! जो मै हूँ | उस सन्यासी ने कहा : फिर बड़ी कठनाई हो गई, क्योंकि जिसका मै परिचय भी न दे सकू बता भी न सकू की कौन मिलना चाहता है, तो भगवान् भी क्या कहेंगे की किसको मिलाना चाहता है ? तो जाओ पहले इसको खोज लो की तुम कौन हो | और मै कह देता हु की जिस दिन तुम अपने आपको जान लोगे फिर तुम्हे परमात्मा को ढूंढ़ना नहीं पड़ेगा क्योंकि जैसे ही तुम अपने आप को जानोगे तभी परमात्मा से मिलन हो जायेगा|

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