एक राजा जिसने एक पक्षी के लिए अपने प्राण दांव पर लगा दिया,जानिए इस राजा के बारे में
प्राचीन भारत मे बहुत से महान राजा हुऐ है जिनमे एक थे शिवि। वह बहुत उदार और न्यायप्रिय था। यदि कोई भी किसी भी मदद के लिए राजा के पास जाता, तो वह उसे कभी निराश नही करते। राजा शिवि हमेशा अपनी प्रजा की जरूरतो का ध्यान रखते थे। वे बहुत न्याय प्रिय राजा थे। उनका न्याय इतना प्रसिद्ध हो गया कि एक बार देवताओं ने भी सोचा कि उनकी परिक्षा अवश्य लेनी चाहिए।
एक बार राजा शिवि अपने दरबार मे बैठे थे कि कही से एक कबूतर उनकी गोद मे आ गिरा। यह डर से कांप रहा था। राजा ने प्यार से उसे अपने हाथो मे उठा लिआ और प्यार से सहलाने लगे। तभी एक बाज राजा शिवि के पास आया और बोला, “हे राजा, मुझे मेरा शिकार वापस कर दो।” राजा शिवि ने मना कर दिया और कहा, “यह कबूतर मेरी शरण मे आया है और शरण मे आये हुये शत्रु की रक्षा करना हमारा धर्म है। अगर मैं इसे वापस करूंगा तो तुम इसे खा जाओगे और मैं पाप का भागीदार बनूंगा।”
बाज ने कहा, “हे राजन्! मैं भूखा हूँ और यह कबूतर मेरा भोजन है। यदि तुम मेरा भोजन मुझे वापस नही करोगे तो भूख से मै मर जाउंगा। क्या तुम इस पाप के भागीदार नही बनोगे?” राजा शिवि ने कहा, ” जो शरण मे आये उसकी रक्षा करना हमारा धर्म होता है। तुम्हे भूखा रखना नही चाहता। तुम कुछ और खाने के लिए मांग सकते हो। बाज ने कहा, “राजन्! मै मांसाहारी हूं। अत: यदि आप इस कबूतर को बचाना चाहते है तो आपको मेरी एक शर्त माननी होगी। जितना वजन इस कबूतर का है उतना ही मांस मुझे आपके शरीर का चाहिए।”
राजा शिवि सहमत हो गये। उन्होंने तराजू की व्यवस्था करने को कहा। कबूतर को एक तरफ रखा गया और शिबी ने अपनी जांघ से मांस का एक टुकड़ा दूसरी तरफ रखा था। लेकिन अभी कबूतर वाला पलड़ा नीचे था। राजा शिवि धीरे-2 करके मांस काट कर डालते रहे लेकिन पलड़ा नही उठा। अंत में, राजा शिवि खुद तराजू के दूसरे पलड़े मे बेठ गये।
अचानक, कबूतर और बाज गायब हो गए और उनके स्थान पर अग्निदेवता और देवता इंद्र प्रकट हुए। उन्होंने राजा शिवि को आशीर्वाद दिया और कहा, “हे राजा। हम आपकी परीक्षा लेने के लिए यहां आए थे। आप वास्तव में बहुत दयालु और न्यायप्रिय हैं।” उन्होंने उनके शरीर को सही कर दिया और देवलोक को प्रस्थान कर गये।