एक बूढ़े योद्धा और विदेशी योद्धा की कहानी

जापान के एक गांव में एक बूढ़ा समुराई योद्धा रहता था। उसके पास तमाम लोग समुराई युद्ध कला सीखने आते थे।एक बार एक विदेशी उसे पराजित करने हेतु उसके गांव आया।वह बहुत ही साहसी था उसके बारे में कहा जाता था कि वह जहां भी जाता था वहां से विजयी होकर ही लौटता था।वह जहां भी जिस के सामने भी लड़ा सभी लोग उस से पराजित ही हुए। जब विदेशी योद्धा ने युद्ध करने की इच्छा जताई तो बूढ़े योद्धा के शिष्यों ने युद्ध ना करने की प्रार्थना की।लेकिन उसने उनके नहीं मानी और नियत समय पर युद्ध आरंभ हुआ।

विदेशी योद्धा तरह-तरह से बूढ़े योद्धा को अपमानित करने लगा।उसने उन्हे गुस्सा दिलाने के लिए तरह-तरह की प्रयत्न किए।लेकिन उन्हे गुस्सा नहीं आया।तबीयत ऐसी योद्धा ने पैरों से धूल उड़ा कर उसमें थूक दिया।फिर भी बूढ़े योद्धा ने कुछ नहीं कहा है पहले की तरह ही शांत और गंभीर बनी रहे।

इससे उस योद्धा को अपनी पराजय का एहसास हुआ।और वह अपनी पराजय मानते हुए चला गया।यह देखकर बूढ़े योद्धा के शिष्य हैरान थे। उन्होंने पूछा आपका इतना अपमान हुआ फिर भी आप चुप रहे।तब उनके गुरु ने उनसे कहा कि यदि कोई तुम्हें तोहफा दे और वह तुम स्वीकार ना करो तो वह किसका होगा ? शिष्य बोले वह तो देने वाले का ही हो जाएगा।तो गुरु जी बोले इसी तरह मैंने भी उसकी गलियों को स्वीकार नहीं किया इसलिए वह उसी के पास ही चली गई।अमूमन हम जीवन में कुछ अप्रिय प्रसंगों का सामना करते ही हैं।तब हम अनावश्यक प्रतिक्रिया देने से बच कर अपनी उर्जा को किसी ने कार्य में लगा सकते हैं।विवेक से विरोधियों को सकारात्मक संदेश देकर उनका हृदय परिवर्तन करने का प्रयास कर सकते हैं।

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