एक प्रवासी मजदूर की कहानी (अपनी मां से फोन पर बात किया)।

हेलो मां कैसी हो आप मैं,ठीक हूं बेटा तुम कैसे हो ,मां काम बंद हो गया है और राशन भी खत्म है मकान मालिक घर से जाने को कह रहा है, मां घर की बहुत याद आ रही है मैं घर आना चाहता हूं। लेकिन मेरे पास इतने पैसे नहीं है कि ट्रेन से आ सकूं। मां मेरे बच्चे कैसे हैं आप सब ने खाना खाया, नहीं बेटा तू भूखा है भला मैं कैसे खा सकती हूं ,मां मैंने खाना खाया है कुछ लोग आए थे उन्होंने थोड़ा सा खाने को दिया था। बेटा तेरी आवाज से लगता है कि तूने बहुत दिनों से भर पेट खाना नहीं खाया है। मां मैं कल घर आ रहा हूं ,कैसे बेटा तेरे पास तो इतने पैसे भी नहीं है कि तू ट्रेन से आ सके ।आप चिंता ना करें मां, मैं पैदल चल कर आ सकता हूं। बेटा गांव बहुत दूर है पैर में छाले पड़ जाएंगे , नहीं मां बस सात- आठ सौ किलोमीटर ही तो है 8- 10 दिन में पहुंच जाऊंगा। बेटा तेरे पास खाने को कुछ नहीं है रास्ते में क्या खाएगा। मां मैंने सुना है कि रास्ते में कुछ लोग खाना बांटते हैं वही खाकर चला आऊंगा। बेटा तुझे रास्ता भी तो नहीं पता कैसे आएगा, अरे मां तू मेरी इतनी चिंता ना कर बहुत लोग आ रहे हैं उन्हीं से पूछते पूछते चला आऊंगा। सोंचा था कि जब इस बार घर आऊंगा, तो तेरी आंखों का ऑपरेशन करवा दूंगा क्योंकि तू मुझे ठीक से देख भी नहीं पाती । अच्छा मां मैं अब फोन रख रहा हूं यह दूसरे का फोन है, अब मैं आपसे घर पर ही बात करूंगा। चलते- चलते एक हफ्ता बीत गया है, मैं घर के बहुत करीब हूं, रात बहुत हो गई है आज मेरे पास खाने को भी कुछ नहीं है लगता है कि आज भूखे पेट ही सोना होगा। जैसे- तैसे करके मुझे नींद आई और मैं हमेशा के लिए सो गया। सुबह हुई तो मैंने देखा कि मेरा शरीर अलग पड़ा था और मैं उसे देख रहा था अचानक से कुछ लोग आते हैं और मेरे शरीर को एक एंबुलेंस में ले जाते हैं। मैंने उनसे चिल्ला चिल्लाकर कहने की कोशिश की। कि मेरा घर बहुत नजदीक है मुझे मेरे घर पहुंचा दो, मेरी मां घर पर मेरा इंतजार कर रही है, मेरे बीवी बच्चे मेरी राह देख रही है मुझे मेरे घर पहुंचा दो। मुझे मेरे घर पहुंचा दो।

मां मुझे माफ कर दे मैं तेरे पास आने में असफल रहा। मैं तेरे पास आने में असफल रहा।।

मेरी इस हालत का जिम्मेदार कौन है शायद मैं या फिर वह लोग जिनको हमने अपना देश सौंप दिया। पता नहीं कब वो अच्छे दिन आएंगे जब कोई हमारी भी भावनाओं की कद्र करेगा

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