एक ऐसी मां जो बच्चों की जरूरत अनुसार शरीर में अलग-अलग तरह का दूध उत्पन्न करती है

अपने बच्चों के लिए माताएं बहुत अद्भुत, अनोखी और असाधारण होती हैं। न केवल इंसानी दुनिया में बल्कि जानवरों की दुनिया में भी। जिम्मेदारी निभाने में, परिश्रम करने में और परिवार के लिए कुर्बानियां देने में उनका कोई मुकाबला नहीं है। जानवरों की दुनिया में ऐसी ही एक माता है मादा कंगारू। मादा कंगारू की कुछ विशेषताएं तो ऐसी हैं जो किसी को भी हैरान कर सकती हैं।

भ्रूण का विकास रोक सकती है मादा कंगारू
कंगारुओं में बहुत ही अविकसित बच्चा पैदा होता है, जिसे ‘जोए’ (Joey) कहा जाता है। यह मादा कंगारू के गर्भ में केवल 31 से 36 दिन तक ही रहता है। इसके बाद यह गर्भ से बाहर आ जाता है। उस समय इसका आकार सेम के बीज जैसा होता है। इस अवधि तक केवल इसके आगे के हाथ ही विकसित हो पाते हैं। इनकी मदद से ही नवजात बच्चा अपनी मां के पेट के बाहर बनी थैली (पाउच) तक चढ़ पाता है और उस पाउच में बने स्तनों से चिपका रहता है। इससे यदि मनुष्य के बच्चे की तुलना करें तो मनुष्य में 23 हफ्ते से कम की अवधि वाला बच्चा अविकसित बच्चा कहलाता है और वह इतना विकसित नहीं होता कि जीवित रह सके।

मादा कंगारू अपने अविकसित बच्चे ‘जोए’ को करीब नौ महीने तक अपने पेट के पास स्थित थैली (पाउच | Kangaroo Pouch) में रखती है और उसका पोषण करती है। ‘जोए’ करीब नौ महीने बाद थोड़े-थोड़े समय के लिए पाउच से बाहर आता है। मादा अपने बच्चे को 18 महीने तक दूध पिलाती है।

जोए: कंगारू का एक अविकसित बच्चा – Kangaroo Joey
मादा कंगारू में यह क्षमता होती है कि यदि उसके गर्भ में भ्रूण मौजूद है, लेकिन उससे पहले पैदा हुआ जोए अभी पाउच से निकलने में सक्षम नहीं है तो वह भ्रूण के विकास को फ्रीज कर देती है। ऐसा तब होता है जब मौसम सूखा होता है या फिर खाने-पीने का संकट होता है।

दो बच्चों के लिए दो प्रकार का दूध उत्पन्न करने में सक्षम
मादा कंगारू में एक और कमाल की क्षमता होती है। वह ‘जोए’ यानी अपने बच्चे की जरूरत के अनुसार शरीर में पैदा होने वाले दूध का कंपोजिशन यानी संयोजन बदल देती है। वह पाउच (Kangaroo Pouch) में मौजूद जोए और बिल्कुल अभी-अभी पैदा हुए नवजात बच्चे के लिए एक ही समय में दो प्रकार का दूध उत्पन्न करने में सक्षम होती है।

धरती के तापमान को कम करने का नुस्खा भी है कंगारू के पास
कंगारू इस मामले में भी अन्य जानवरों से अनोखा है कि यह घास खाने वाले अन्य जानवरों की तरह सांस बाहर छोड़ने और डकार लेते समय ग्रीनहाउस गैस ‘मीथेन’ का उत्सर्जन लगभग नहीं ही करता है। इसकी जगह इसके शरीर में एसीटेट बनता है जो इसके शरीर को अतिरिक्त ऊर्जा देने में काम आता है। वैज्ञानिक इस प्रयास में लगे हैं कि कंगारू के शरीर में इस प्रकार के बदलाव के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया को अन्य घास खाने वाला जानवरों में पहुंचा दिया जाए ताकि घास चरने वाले जानवर मीथेन गैस का उत्सर्जन न करें। यहां बताते चलें कि मीथेन का प्रति अणु ग्रीन हाउस प्रभाव (जो धरती के गर्म होने के लिए जिम्मेदार है) कार्बन डाई आक्ससाइड गैस से 23 गुना ज्यादा है।

नए अध्ययनों में पता चला है कि कंगारू की पूंछ केवल संतुलन का काम ही नहीं करती बल्कि यह उसके तीसरे पैर की तरह भी काम करती है। यह कंगारू को चलने में मदद करती है जिसे ‘थ्री स्टेज वाक’ कहा जाता है।
कंगारू के पिछले पैरों में लचीले टेंडन (स्नायु) होते हैं। इनमें भरपूर ऊर्जा भरी होती है और इन्हीं टेंडन की स्प्रिंग क्रिया से कंगारू उछाल भरकर एक जगह से दूसरी जगह पहुंच जाते हैं।
कंगारू पानी में तैर सकते हैं।
कंगारू के उछलकर दौड़ने की गति बहुत ज्यादा नहीं होती है। दरअसल कंगारू का जोर ज्यादा तेज गति के बजाय लंबी दूरी तय करने का होता है। बंजर भूमि और बहुत ही भिन्न मौसम पैटर्न के कारण कंगारू को बिना थके बहुत दूर तक जाना जरूरी होता है। इसलिए उछलकर मध्यम गति के साथ दौड़ना इनके लिए फायदेमंद रहता है।
कंगारू केवल आस्ट्रेलिया में ही पाए जाते हैं।
जंगल में कंगारू औसतन छह वर्ष तक जीवित रह पाता है, जबकि किसी चिड़ियाघर या अन्य बंधी हुई जगह में 20 वर्ष तक की आयु भी पा लेता है।
कंगारू के समूह को मॉब्स कहा जाता है।
आस्ट्रेलिया का जनजातीय समुदाय कंगारू के मांस, खाल, हड्डियों और टेंडन (स्नायु) का इस्तेमाल विभिन्न उद्देश्यों के लिए करता है।
आमतौर पर कंगारू बिना किसी उकसावे के मनुष्यों पर हमला नहीं करते। ये ज्यादातर भूखे और प्यासे होने पर ही आक्रामक होते हैं। हां ये फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। इसी के साथ भोजन और पानी के लिए ये घरेलू जानवरों के साथ भी प्रतिस्पर्धा करते हैं
आस्ट्रेलिया में कंगारूओं की संख्या भी दिनोंदिन बढ़ रही है। 2010 में इनकी संख्या जहां 27 मिलियन थी, वहीं 2017 में यह बढ़कर 50 मिलियन तक हो चुकी है। बढ़ती संख्या के कारण आस्ट्रेलिया के लोगों से कहा जा रहा है कि वे ज्यादा से ज्यादा कंगारू का मांस खाएं।

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