इन्द्र ने शुक्राचार्य के पास अपनी पुत्री जयंती को क्यों भेजा ? जानिए वजह
समुन्द्र मंथन के बाद देवासुर संग्राम हुआ जिसमे अमृत पिए देवता जित गए और चुन चुन कर असुरो को मारने लगे, तब शिव से मृत्युंजय मन्त्र लेने शुक्राचार्य तपस्या में लीन हो गए. हालाँकि इंद्र को अपना इन्द्रासन वापस मिल गया था लेकिन इस पर भी उसे संतोष नहीं था.
ऐसे में शुक्राचार्य को रोकने के लिए उसने अपनी बेटी जिसका नाम जयंती (बेटे का नाम जयंत था) को शुक्राचार्य की तपस्या में विघ्न डालने के लिए भेजा. हालाँकि बेटी ऐसा नहीं करना चाहती थी लेकिन पिता की आज्ञा को टालना भी उसके लिए संभव नहीं था और वो शुक्राचार्य के पास गई.
लेकिन बेटी ने अप्सराओ की तरह अपने यौवन का नहीं बल्कि सतगुण का उपयोग किया, जयंती शुक्राचार्य की सेवा करने लगी और तपस्या में ही सहायक होने लगी.
शुक्राचार्य ने तब तप छोड़ दिया और जयंती के साथ शादी की और उनसे देवयानी नाम की एक कन्या को जन्म दिया, हालाँकि बाद में शुक्राचार्य फिर से तपस्या की और अपने लक्ष्य में कामियाबी पाई थी लेकिन एक बार के लिए इंद्र अपने मंसूबो में सफल हो ही गया था.
हालाँकि कुछ जगह पर वरदान प्राप्ति के बाद शादी और देवयानी की बात भी कहते है लेकिन इंद्र की सफलता तो हो ही गई थी. ऐसे है हमारे इंद्र देव जो की हम जैसे ही है बस वो अपने अच्छे कर्मो के चलते देवताओ के अधिपति बन गए है और हम अभी भी मोहमाया में भटक रहे है.