आसमानी बिज़ली वायुयान से क्यों नहीं टकराती है? जानिए

तड़ित या “आकाशीय बिजली” वायुमण्डल में विद्युत आवेश का डिस्चार्ज होना (एक वस्तु से दूसरी पर स्थानान्तरण) और उससे उत्पन्न कड़कड़ाहट (thunder) को तड़ित कहते हैं। संसार में प्रतिवर्ष लगभग 1करोड़ 60 लाख तड़ित पैदा होते हैं।
शिवकर बापूजी तलपदे (१८६४ – १७ सितम्बर १९१७) एक भारतीय विद्वान थे। माना जाता है कि १८९५ में उन्होने मानवरहित विमान का निर्माण किया था। के निर्माता होना माना जाता है। वे मुम्बई के निवासी थे तथा संस्कृत साहित्य एवं चित्रकला के अध्येता थे।
शिवकर बापूजी तलपदे शिवकर बापूजी तलपदे जन्म 1864 मुम्बई मृत्यु 1916 राष्ट्रीयता भारतीय शिक्षा सर जे जे कला विद्यालय, मुम्बई शिवकर ने ई. 1922 में एक प्रयोगशाला स्थापित किया और वेदमन्त्रों के आधार पर आधुनिक काल में पहला वैदिक मॉडल निर्माण किया जिसे बिमान बता कर उड़ा दिया गया। इसका परीक्षण सन् 1922ई. में मुंबई के चौपाटी समुद्र तट पर किया गया था । परन्तु उपलब्ध प्रमाणों के अनुसार विमान उड़ाने के पहला प्रयास सन् १९१५ से सन् 1934 ई। के मध्य में हुआ था। शिवकर ने ई. १९१६ में पं. सुब्रह्मण्ययम शास्त्री से महर्षि भरद्वाज की यन्त्रसर्वस्व – वैमानिक प्रकरण ग्रन्थ का अध्ययन कर ‘मरुत्सखा’ विमान का निर्माण आरंभ किया। किन्तु लम्बी समय से चल रही अस्वस्थता के कारण दि. १७ सितम्बर १९१७ को उनका स्वर्गवास हुआ एवं ‘मरुत्सखा’ विमान निर्माण का कार्य अधूरा रह गया।
जी हां आसमानी बिजली वायुयान से टकराती भी है और नुकसान भी पहुंचा चुकी है वह बात अलग है कि नुकसान हाल फिलहाल में नहीं हुआ है और न ही होने की गुंजाइश सम्भवतः शेष है ,हॉलांकि सम्भावनायें नगण्य नहीं हैं | इस बात का ध्यान 1930 से शुरू हुआ है कि एयरक्राफ्ट क्रैश बिजली गिरने से भी हो सकता है जिसके तहत इस पर ध्यान दिया गया |
ऐसी घटना का सर्वोत्तम उदाहरण pan am फ्लाइट 214 से दिया जा सकता है| एक ख़ौफनाक मंज़र !
8 दिसंबर 1963 pan अमेरिकन वर्ल्ड एयरवेज़ की pan am फ्लाइट 214 में सवार 81 जानें जिसमें 8 क्रू सदस्य व 73 यात्री उड़ान पर थे| सब कुछ ठीक चल रहा था परन्तु रास्ते में मौसम खराब होने की जानकारी पाइलट को दी गई तब तक देर हो चुकी थी| हवाई जहाज़ आकाशीय बिजली का शिकार हुआ क्योंकि प्लेन इसके द्वारा क्रैश हुआ| दुर्भाग्यवश 81 की 81 जानें चली गई कोई भी बच न सका
क्रैश होने के बाद उस हवाई जहाज़ की तस्वीर देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है..
कितना भयावह दृश्य हुआ होगा!
सिविल एरोनॉटिक्स बोर्ड ने बैठक बुलाया ,जॉच की गई
सिविल एरोनॉटिक्स बोर्ड की एक जांच ने निष्कर्ष निकाला कि दुर्घटना का कारण एक आकाशीय बिजली थी जिसने विमान के ईंधन टैंक में से एक टैंक में ईंधन वाष्प को प्रज्वलित किया था, जिससे एक विस्फोट हुआ जिसने एयरक्रॉफ्ट विंगों में से एक को नष्ट कर दिया। जिस तरह से बिजली ने आग लगा दी थी, वह कभी निर्धारित नहीं थी। हालांकि, जांच में विभिन्न तरीकों से पता चला कि बिजली ,उड़ान में विमान को नुकसान पहुंचा सकती है, जिसके कारण नए सुरक्षा नियमों का पालन किया गया|
तो ऐसा आज के हवाई जहाज़ मे भी हो सकता है?
जी नही |
चिंता का मुख्य क्षेत्र ईंधन प्रणाली है, जहां एक छोटी सी चिंगारी भी विनाशकारी हो सकती है। इस प्रकार इंजीनियर यह सुनिश्चित करने के लिए अत्यधिक सावधानी बरतते हैं कि बिजली की धाराएँ किसी विमान के ईंधन प्रणाली के किसी भी हिस्से में चिंगारी पैदा न कर सकें। ईंधन की टंकियों के आस-पास की विमान की चमड़ी काफी मोटी की जाती है ताकि जलने से बच सके। सभी संरचनात्मक जोड़ों और फास्टनरों को स्पार्क्स से रोकने के लिए कसकर डिज़ाइन किया जाता है, क्योंकि बिजली का प्रवाह एक से दूसरे भाग से गुजरता है। प्रवेश द्वार, ईंधन भराव कैप और किसी भी झरोखों को डिजाइन किया जाता है और बिजली का सामना करने के लिए परीक्षण किया जाता है। सभी पाइप और ईंधन लाइनें जो इंजनों को ईंधन ले जाती हैं, और इंजन खुद को बिजली से बचाते हैं। इसके अलावा, कम विस्फोटक वाष्प उत्पन्न करने वाले नए ईंधन अब व्यापक रूप से उपयोग किए जाते हैं।
जैसे-जैसे हम ऊपर की ओर जाते हैं|
ऊंचाई पर तापमान नियत नहीं रहता पहले तापमान गिरता जाता है एक निश्चित ऊंचाई पर नियत रह जाता है इसके बाद पुनः तापमान में बढ़ोतरी होती है फिर नियत पड़ता है फिर से घटोत्तरी होती है किंतु जिस क्षेत्र में एयरक्राफ्ट उड़ान भरता है वहां पर तापमान का ढाल ऋणात्मक ही होता है अतः तापमान नीचे गिरा होता है| वायुमण्डल की मानक ऊचाई व तापमान के बीच का ग्रॉफ नीचे दिया गया है|
अत: बादल मे उपस्थित जल जमने लगता है और बर्फ मे बदलने लगता है| बादल गतिशील रहने पर बर्फ कणों मे घर्षण होता है परिणामल्वरूप ऋणात्मक आयन का निर्माण होता है|
जैसा की सभी को पता धातुयें धनात्मक आवेश ली होती हैं| धनात्मक आवेश ऋणात्मक आवेश आपस में एक दूसरे को आकर्षित करते रहते हैं| हवाई जहाज़ की ऊपरी आवरण एल्युमीनियम के एलॉय से बनी हुई होती है ,इस एलॉय को डुरालोमीन कहते हैं|
सतह धनात्मक होती है ऋणात्मक आवेश एलुमिनियम के धनाचत्मक आवेश की तरफ आकर्षित होती है जिसे आम भाषा में बिज़ली का गिरना कहते हैं|
नुकीले हिस्से मे सबसे पहले बिजली गुजरती है| (विंगलेट्स या नोज़) तथा टेल से निकल जाती है| अन्दर बैठे यात्री को पता तक नही चलता हालॉकि पाइलट और क्रू सदस्य को पता चलती है|
यात्रीगण अंदर सुरक्षित रहते हैं यह कोई जादू नहीं है बल्कि यह फैराडे द्वारा किया हुआ एक प्रयोग है| किसी बन्द सेल के ऊपरी भाग मे विद्युत प्रवाह करने पर उसके अन्दर विद्युत प्रवाह नही होता|

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