आखिर जानिए कुंभ, सिंहस्थ और अर्ध कुंभ में क्या अंतर है?

चार स्थानों पर प्रत्येक तीन वर्ष के अंतराम में कुंभ का आयोजन होता है, इसीलिए किसी एक स्थान पर प्रत्येक 12 वर्ष बाद ही कुंभ का आयोजन होता है। जैसे उज्जैन में कुंभ का अयोजन हो रहा है, तो उसके बाद अब तीन वर्ष बाद हरिद्वार, फिर अगले तीन वर्ष बाद प्रयाग और फिर अगले तीन वर्ष बाद नासिक में कुंभ का आयोजन होगा। उसके तीन वर्ष बाद फिर से उज्जैन में कुंभ का आयोजन होगा। उज्जैन के कुंभ को सिंहस्थ कहा जाता है।

कलश को कुंभ कहा जाता है। कुंभ का अर्थ होता है घड़ा। इस पर्व का संबंध समुद्र मंथन के दौरान अंत में निकले अमृत कलश से जुड़ा है। देवता-असुर जब अमृत कलश को एक दूसरे से छीन रह थे तब उसकी कुछ बूंदें धरती की तीन नदियों में गिरी थीं। जहां जब ये बूंदें गिरी थी उस स्थान पर तब कुंभ का आयोजन होता है। उन तीन नदियों के नाम है:- गंगा, गोदावरी और क्षिप्रा।

अर्ध का अर्थ है आधा। हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ का आयोजन होता है। पौराणिक ग्रंथों में भी कुंभ एवं अर्ध कुंभ के आयोजन को लेकर ज्योतिषीय विश्लेषण उपलब्ध है। कुंभ पर्व हर 3 साल के अंतराल पर हरिद्वार से शुरू होता है। हरिद्वार के बाद कुंभ पर्व प्रयाग नासिक और उज्जैन में मनाया जाता है। प्रयाग और हरिद्वार में मनाए जानें वाले कुंभ पर्व में एवं प्रयाग और नासिक में मनाए जाने वाले कुंभ पर्व के बीच में 3 सालों का अंतर होता है। यहां माघ मेला संगम पर आयोजित एक वार्षिक समारोह है।

सिंहस्थ का संबंध सिंह राशि से है। सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर उज्जैन में कुंभ का आयोजन होता है। इसके अलावा सिंह राशि में बृहस्पति के प्रवेश होने पर कुंभ पर्व का आयोजन गोदावरी के तट पर नासिक में होता है। इसे महाकुंभ भी कहते हैं, क्योंकि यह योग 12 वर्ष बाद ही आता है। इस कुंभ के कारण ही यह धारणा प्रचलित हो गई की कुंभ मेले का आयोजन प्रत्येक 12 वर्ष में होता है, जबकि यह सही नहीं है।

1.हरिद्वार में कुंभ : हरिद्वार का सम्बन्ध मेष राशि से है। कुंभ राशि में बृहस्पति का प्रवेश होने पर एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर कुंभ का पर्व हरिद्वार में आयोजित किया जाता है। हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ का भी आयोजन होता है।

2. प्रयाग में कुंभ : प्रयाग कुंभ का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि यह 12 वर्षो के बाद गंगा, यमुना एवं सरस्वती के संगम पर आयोजित किया जाता है। ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तब कुंभ मेले का आयोजन प्रयाग में किया जाता है। अन्य मान्यता अनुसार मेष राशि के चक्र में बृहस्पति एवं सूर्य और चन्द्र के मकर राशि में प्रवेश करने पर अमावस्या के दिन कुंभ का पर्व प्रयाग में आयोजित किया जाता है। एक अन्य गणना के अनुसार मकर राशि में सूर्य का एवं वृष राशि में बृहस्पति का प्रवेश होनें पर कुंभ पर्व प्रयाग में आयोजित होता है।

3. नासिक में कुम्भ : 12 वर्षों में एक बार सिंहस्थ कुंभ मेला नासिक एवं त्रयम्बकेश्वर में आयोजित होता है। सिंह राशि में बृहस्पति के प्रवेश होने पर कुकुंभ पर्व गोदावरी के तट पर नासिक में होता है। अमावस्या के दिन बृहस्पति, सूर्य एवं चन्द्र के कर्क राशि में प्रवेश होने पर भी कुंभ पर्व गोदावरी तट पर आयोजित होता है।

4. उज्जैन में कुंभ: सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर यह पर्व उज्जैन में होता है। इसके अलावा कार्तिक अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्र के साथ होने पर एवं बृहस्पति के तुला राशि में प्रवेश होने पर मोक्षदायक कुंभ उज्जैन में आयोजित होता है।

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