आखिर किस प्रकार द्रोपदी पांचों पांडवों के साथ निभाती थी अपना पतिव्रत धर्म

महाभारत हिंदुओं का एक बहुत बड़ा महाकाव्य है। महाभारत में द्रोपदी का वर्णन आता है। जो पांडवों की पत्नी थी। द्रोपदी राजा द्रुपद की पुत्री थी। राजा द्रुपद ने अपनी बेटी द्रोपदी के विवाह के लिए एक स्वयंवर रचाया। इस स्वयंवर को जीतकर अर्जुन ने द्रोपदी से विवाह किया।

जब पांचो पांडव की पत्नी द्रोपदी को लेकर अपनी कुंती के पास पहुंचे तो कुंती ने बिना द्रोपदी की तरफ देखें पांडवों से कह दिया कि आपस में बांट लो। इसलिए द्रोपदी को पांचों पांडवों की पत्नी बनकर जीवन को। बिताना पड़ा था। इसलिए द्रोपदी का नाम पंचाली भी पड़ा।

अब प्रश्न उठता है कि अपने पांचों पतियों के साथ पति धर्म कैसे निभाती थी। क्या द्रोपदी को अन्य पांडवों से प्रेम था? क्या द्रोपदी के अन्य पांडवों से संबंध मधुर थे? क्या द्रोपदी आज उनके प्रकार सभी पांडवों के साथ ही पति धर्म निभाती थी।आज हम आपको इस लेख में इस प्रश्न का उत्तर देने की कोशिश कर रहा हूं।

अपनी माता कुंती के आज्ञा पालन किस प्रकार हो यही सोचकर सारे पांडव असमंजस की स्थिति में थे। सभी पांडवों ने यह निर्णय किया कि अर्जुन को छोड़कर सभी पांडव सन्यास ग्राहण कर लेंगे। तभी वहां भगवान श्रीकृष्ण आ गए। उन्होंने इस समय समस्या का हल पांडवों को बताया। प्रत्येक वर्ष पांचों में से एक पांडव के साथ द्रोपदी पति धर्म का निर्वाहन करेगी। यदि कोई दूसरा पांडव उस समय द्रोपदी के कक्ष में पहुंचा तो उसे 1 वर्ष सन्यास ग्राहण करना पड़ेगा।

इस प्रकार द्रोपदी को एक-एक वर्ष सभी पांडवों के साथ बिताना होगा। महाभारत के इसी प्रकार एक कथा और आती है कि एक बार अर्जुन के साथ द्रोपदी ने 1 वर्ष का पतिव्रत धर्म निभाया। उसके बाद धर्मराज युधिष्ठिर का नंबर आया। लेकिन अर्जुन द्रौपदी के कक्ष पर ही अपना गांडीव धनुष भूल आये।

तभी उनके पास एक ब्राह्मण आया उसने अर्जुन से अपनी गायों की रक्षा करने के लिए कहा। अर्जुन अपना छत्रिय धर्म निभाने के लिए धनुष बाण लेने के लिए रानी द्रोपदी के कक्ष में चले आये। उस समय युधिष्ठिर का नंबर था। इसी कारण अर्जुन को 1 वर्ष के लिए अपने राज्य का त्याग करना पड़ा। इसी 1 वर्ष में नागकन्या उलूपी का विवाह अर्जुन से हुआ था।

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