अमरीश पुरी, जिन्हें एक महा खलनायक के रूप में जाना जाता है, वो वास्तविक कैसे इंसान थे? जानिए

1932 मे पंजाब के नवांशहर मे जन्मे अमरीशपुरी के दो भाई स्व.मदनपुरी और चमनपुरी पहले से ही एक्टर के रूप मे मुम्बई मे स्थापित हो गये थे उन्हीं को देखते हुए वे मुम्बई पहुंचे जहाँ उनके भाई मदनपुरी ने उनका पोर्टफोलियो बनवाया और साथ साथ ही उन्हें यह नसीयत भी दी कि वे अपना अभिनेता बनने का संघर्ष भी स्वयं करें।

जब उस पोर्टफोलियो को लेकर वे निर्माताओं से काम माँगने जाते थे तो फिल्म क्षेत्र से जुडे सभी व्यक्तियों ने उन्हें साफ मना कर दिया कि उनका चेहरा किसी भी मायने मे हीरो नहीं लगता अलबत्ता वे फिल्मों में एक बदमाश चरित्र मे अधिक उचित लगेंगे यह सुनकर उनका बहुत दिल बहुत टूट गया था वे खलनायक का चरित्र फिल्मों में नहीं करना चाहते थे क्योंकि उनके पिता फिल्मों में काम करना एक अच्छा काम नहीं समझते थे शायद बहुत कम लोगों को यह मालूम होगा कि अपने जमाने के प्रसिद्ध कलाकार व गायक स्व.के एल सहगल उनके कजिन थे जो ऊंचाई पर पहुँचने के बाद शराब के ऐसे लती बने कि मात्र ब्यालीस साल की आयु मे शराब के ड्रम के ड्रम पीने के बाद दुनिया छोड़ गये। उनके पिता उन्हें स्व. सहगल की मिसाल देते थे पिता की इन्हीं बातों से और फिल्म निर्माताओं के नकारे जाने के बाद वे एक क्लर्क के रूप मे सरकारी नौकरी करने लगे।

नौकरी में रहते हुए उनकी मुलाकात उनकी जीवनसंगिनी से हुई और उन्होंने शादी भी कर ली। पर उनके मन मे थियेटर अभिनय की लालसा समाप्त नहीं हुई थी सन 1961 मे उनकी मुलाकात थिएटर शख्सियत ईब्राहिम अल्काजी से हुई जिन्होंने उन्हें उनका शौंक जारी रखने की हिदायत दी अमरीश जी नौकरी के साथ साथ थियेटर भी करते रहे पर उनके असली गुरु बने पं.सत्यदेव दुबे , जिनके साथ उनका एक लम्बा समय गुजरा और उन्हें एंक्टिग की बारिकियां उन्हीं ने सिखलाई।

थियेटर की दुनिया में अपना नाम कमाने के साथ साथ उन्हें इस बीच फिल्मों में भी छोटे मोटे रोल मिलते रहे किन्तु वे रोल सहायकों के रूप में ही होते थे और वो भी बदमाशों के सहायक के ही होते थे।

उनका सही समय आरम्भ सन 1980 से ही हुआ जो उनकी जनवरी 2005 तक लगातार चला।इस बीच उन्होंने कई भाषाओं में सैकड़ों फिल्मों में काम किया और सफलता की बुलंदियों को चुमा।
हौलिवुड की एक बहुचर्चित फिल्म गाँधी मे काम करने के बाद वे हौलिवुड मे भी अपनी पहचान बना लिये हौलिवुड के सफलतम निर्देशक स्टीवन स्पिलबर्ग ने एक बार उन्हें अपनी एक बहुचर्चित फिल्म ” इंडियाना जोंस” मे रोल करने के लिए उन्हें ओडिशन के यूएस बुलाना चाहा परन्तु अपने स्वाभिमानी स्वभाव के चलते वे वहाँ नहीं गये और संदेश भिजवाया कि स्टीवन यदि मुम्बई आ जायें तो अधिक उचित रहेगा लिहाजा स्टीवन को उन्हें कास्ट करने के लिए मुम्बई आना पडा।उस फिल्म मे उन्हें एक नरबलि देने वाले चरित्र ‘ मौलाराम’ नामक का किरदार निभाना था और वह चरित्र उन्होंने बहुत अच्छे से निभाया।

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