अडूसा के क्या फायदे हैं?
आयुर्वेद के अनुसार, अडूसा (वासा) उत्तेजक, कफनिःसारक, शीत वीर्य, आवाज के लिए फायदेमंद, कृमि नाशक, कुष्ठ याने त्वचा विकार, रक्त , पित्त दोष हर, खांसी, श्वास विकार और क्षय को दूर करता है।
इस के पत्तों में vasicine नामक क्षाराभ होता है।वासा के फूल, स्वाद में कड़वे और तीखे, बुखार कम करनेवाले, मूत्र उत्पत्ति बढ़ाने वाले और शीत होते है।
इसकी मूल की त्वचा, बुखार नाशक, मूत्र उत्पत्ति वर्धक, कफनिःसारक, कृमिनाशक होती है।इसका प्रधान गुण कफ को पतला कर बाहर निकलना है।
यह श्वासनलिकाओं का विस्फार करा है जिससे सांस लेने में आसानी होती है। पुरानी खांसी और श्वसन संस्थान के विकारों में वासा पत्तियों के स्वरस में काली मिर्च, अरदक स्वरस और शहद मिलाकर दिया जाता है। इस से जमा हुआ कफ आसानी से बाहर निकलता है और खांसी, सांस फूलना कम होता है।बच्चों के कफ विकारों में भी इसका टंकण के साथ इस्तेमाल करना फायदेमंद होता है।
वासावलेह कफ विकारों के लिए असरदार और प्रसिद्ध औषधी योग है।
रक्तपित्त में इसका स्वरस शहद के साथ देते है। इस के फूलों से बनाये हुए गुलकंद या पत्तियों के चूर्ण का भी इस्तेमाल होता है।वासा सिद्ध घृत – वासा घृत का प्रयोग किया जाता है।
मलेरिया में पत्तों के या मूल की त्वचा के चूर्ण का उपयोग करते है।
आमवात में पत्तियों का पुल्टिस बनाकर लगाया जाता है। इस से सूजन और दर्द कम होने में मदत मिलती है।
त्वचा रोगों में इसका रस पिलाते है या पत्तियों का लेप करते है। स्नान के लिए पत्तियों का क्वाथ बनाकर इस्तेमाल किया जाता है।
मुंह के छाले और दांतों, मसूड़ों के दर्द में यह फायदेमंद है।
अडूसा के फूलों का चूर्ण और गुड़ मिलाकर खाने से सिरदर्द में काफी आराम मिलता है।