अगर गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य का अंगूठा नहीं मांगा होता, तो क्या वह महाभारत के युद्ध में अर्जुन को परास्त कर देता?
अर्जुन दोनों हाथों से समान गति से युद्ध कर सकते थे और यह कला उन्होंने खुद सीखी थी वो रात में भी दिन की ही तरह युद्ध कर सकते थे तथा रथ के साथ भी और बिना रथ के भी युद्ध कर सकते थे.
यहां एकलव्य का केवल अंगूठा ही कटा था जिसके बाद द्रोणाचार्य जी ने उसे बिना अंगूठे के कैसे तीर चलाना है सिखा दिया था अगर एकलव्य को दाये हाथ के अंगूठे से कोई कमी हो गई थी.
तो उसने बाये हाथ से तीर चलाना क्यूं नहीं सिखा साथ में अर्जुन केवल द्रोणाचार्य के आश्रम तक ही नहीं रुके वो अन्य जगहों पर भी शिक्षा प्राप्त करने गए थे तथा नवीन तकनीकों को भी सिखते थे।