अगर एक खाली पेनड्राइव में डेटा भर दें तो उसका वजन बढेगा या समान रहेगा? जानिए

हर ट्रांजिस्टर आइस ट्रे के खांचे की तरह है जिसमें आवेश या तो होगा या नहीं होगा. जिस तरह खाली आइस ट्रे के खांचों में कोई पानी नहीं होता वैसे ही नए ख़रीदे खाली पेन ड्राइव के ट्रांजिस्टर में आवेश नहीं होता.

आवेश नहीं होना अर्थात = 0

आवेश होना = 1

इसे बाइनरी भाषा कहते हैं. सारा इलेक्ट्रॉनिक डेटा केवल और केवल 0 और 1 के अलग अलग रूप से व्यवस्थित होने से बनता है. ट्रांजिस्टर एक दूसरे से कपैसिटव मेथड से कनेक्ट होते है जो उनके बीच एक capacitor की उत्पत्ति कारता है।

इसलिए जब आप कोई डाटा पेन ड्राइव में भरते हैं तो सारे ट्रांजिस्टर खाली नहीं रहते बल्कि वे विभिन्न पैटर्न में भरे जाते हैं.

स्वाभाविक है कि भरी हुई आइस ट्रे का वजन खाली आइस ट्रे से ज्यादा होगा क्यूंकि उसमें पानी का भार भी जुड़ जायेगा. इसी तरह सिद्धांत रूप में एक पूरी तरह खाली पेन ड्राइव से एक भरे हुए पेन ड्राइव का भार उतना ज्यादा होना चाहिए जितना उसके कैपेसिटर में प्रवाहित आवेश का हो.

यह अंतर हांलांकि हमें महसूस होना असंभव है क्यूंकि electron का भार होता है 9.109×10−31 किलोग्राम, अर्थात ९.१०९ किलोग्राम को ‘एक के आगे ३१ शून्य’ संख्या से भाग देने पर जो प्राप्त होगा वह. आवेश इन इलेक्ट्रान का बना होता है इसलिए उसका भार सामान्य मानवीय प्रसंग में नगण्य ही रहेगा चाहे वह आसमान की बिजली जैसा लाखों गुना प्रबल आवेश भी क्यूँ न होता.

तो सैद्धान्तिक रूप से यह सही है और आदर्श स्थिति में ऐसा ही होता भी है कि पेन ड्राइव का भार बढेगा, पर हमारी रोजमर्रा की जिन्दगी में कुछ अन्य स्थितियां कार्य करती हैं जो इस पर प्रभाव डालती हैं. अब हम उन पर विचार करते हैं –

पहला तो यह है जब आप पेन ड्राइव को फोर्मेट करते हैं तो सामान्य फोर्मेट में उसमें उपस्थित डेटा आम तौर पर कहीं नहीं जाता बल्कि सिर्फ उसकी इंडेक्स ख़त्म हो जाती है. इसका अर्थ है कि उस सीट पे इलेक्ट्रान अब भी वैसे ही बैठा है जैसे पहले बैठा था, बस उसे नोटिस दे दिया गया है कि नया डेटा आने पर उसे उठा दिया जायेगा और पैटर्न परिवर्तित होगा. आपको भले ही वह पेन ड्राइव खाली दिखे पर वह सिर्फ इस बात को दिखाता है कि सारी डिस्क डेटा लेखन के लिए उपलब्ध है. इसलिए सामान्य फोर्मेट करने से आवेश का भार नही बदलता.

हार्ड फोर्मेट करने का भी एक आप्शन वैसे उपलब्ध होता है जो आवेश की क्लींजिंग करके सारी सीटें खाली करवा लेता है वह zero-Filling कहलाती है, वह एक अलग विषय है और संक्षेप में केवल पेन ड्राइव को नये जैसा खाली कर देती है जहाँ से डेटा रिकवरी असंभव होगी.

तो यहाँ काफी हद तक संभव है कि आपका नया पेन ड्राइव भी कुछ ड्राईवर सेटअप पहले से ही उसमें रखता हो. ऐसी स्थिथि में वह आवेश के साथ ही आता है और एक भरे हुए पेन ड्राइव जैसा ही भार रखेगा.

दूसरी बात है कि किस डेटा का भार कितना होगा यह निर्धारण हमारे लिए संभव नहीं क्यूंकि कंप्यूटर उपलब्ध जगह और स्थिथि के अनुसार एक ही फाइल को कई तरह से कई पैटर्न में सेव कर सकता है जिसका अर्थ है कि आवेश स्तर पर आपकी ११२ kb कि टेक्स्ट फाइल ३mb कि पीडीऍफ़ से भारी हों यह भी संभव है. (यही वजह है कि 1 GB का एक फाइल जहाँ ३ मिनट में कॉपी होगा वहीँ 1 GB का ३००० फाइल वाला फोल्डर कॉपी होने में १३ मिनट ले सकता है) .

इसलिए अंततः कहना होगा कि यह आवेश से भार बढ़ने वाली बात केवल अनुसन्धान करने वाले के लिए महत्व रख सकती है. हमारे आम जीवन में यह इतना नगण्य है कि उसका कोई विशेष उपयोग नही. उस पर फिर डेटा लिखने, बदलने और हटाने में यह कभी निश्चित नही होता कि कुल आवेश बढेगा या घटेगा इसलिए हर डेटा के लेखन पर भार केवल ‘बदलेगा’ , पर उसका ज्यादा कम होना कंप्यूटर द्वारा रैंडम चुनाव पर निर्भर है.

और आखिर में यह भी संभव है कि आपके पेन ड्राइव के अन्दर भरे आवेश से कहीं ज्यादा आवेश उसकी मेटल/प्लास्टिक की कोटिंग पर सिर्फ आपके बालों से रगड़ खाने कि वजह से भरा पड़ा हो – यह वह स्थिरवैद्युत आवेश होता है जिसकी वजह से कंघे से कागज़ के टुकड़े चिपक जाते हैं[1] और रबर के जूते पहने हुए आप जब मॉल के एलीवेटर कि मेटल कि रॉड छूते हैं ओ आपको हल्का सा झटका लगता है.

अब आप देख ही सकते हैं कि यह डाटा के भार से तो कहीं भारी हो सकता है इसलिए आपके पेन ड्राइव की स्थिर विद्युतीय स्थिति भी फिक्स नहीं रहती, जो यह निर्धारित करता है कि दरअसल आपके द्वारा डेटा भरने पर पेन ड्राइव का भार बढ़ना केवल नगण्य हो सकता है और वह सिर्फ सम्भावना ही है क्यूंकि यह सब बहुत से परिस्थितियों पर निर्भर है.

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