अकबर के कितने पुत्र थे और क्या नाम था? जानिए इसके बारे में

जहांगीर : अकबर का वारिस, नूरजहां का शौहर और शाहजहां का बाप होना ही जिसकी क़ाबिलियत थी

ताज्जुब की बात है कि जिसकी रगों में तैमूरी, चंगेज़ी और राजपूती खून दौड़ रहा हो, जो बाबर और अकबर का वंशज हो, वह सिर्फ नाम का ‘जहांगीर’ था!

सल्तनत-ए-हिंदुस्तान में अकबर के इंतेकाल का मातम सात दिन चला. आठवें दिन यानी 24 अक्टूबर, 1605 को आगरा दरबार में सलीम के नाम की नौबत बज उठी. इन्हीं दिनों के आसपास तुर्की में भी सलीम नाम का शासक था. ‘सलीम’ नाम को लेकर दुनिया और इतिहास में पशोपेश न हो, इसलिए मुग़ल सलीम ने खुद के ‘जहांगीर’ होने का ऐलान करवा दिया. ‘जहांगीर’ यानी दुनिया को जीतने वाला.

हालांकि सब इस बात से मुतमइन नहीं. चर्चित पत्रकार शाज़ी ज़मां अपनी किताब ‘अकबर’ लिखते हैं कि सलीम को हिंदुस्तान के पीरों और फ़कीरों ने कभी बताया था कि बादशाह अकबर के गुज़र जाने के बाद नूरुद्दीन नाम का शख्स सुल्तान बनेगा, सो सलीम ने अपना नाम नूरुद्दीन जहांगीर बादशाह रख लिया.

जो भी है, सलीम के खाते में ऐसी कोई अहम लड़ाई या ऐसा कोई अहम वाक़या दर्ज़ नहीं है, जो उसके नाम की गवाही देती हो. ताज्जुब की बात है, जिसकी रगों में तैमूरी, चंगेज़ी और राजपूती खून दौड़ रहा हो, जो बाबर और अकबर का वंशज हो, वह सिर्फ नाम का ‘जहांगीर’ था!

सलीम के पैदा होने का क़िस्सा मुग़ल इतिहास में बड़े चाव से लिखा जाता है. सलीम बादशाह अकबर और अमर के राजा भारमल की बेटी की संतान था. कोई उसका नाम जोधा बोलता है, तो कोई हीरकंवर. कुछ लोग उसे आमेर का न होकर जोधपुर का बताते हैं. इससे याद आता है कि कुछ साल पहले ‘जोधा अकबर’ फ़िल्म में जोधा को अकबर की पत्नी बताने पर विवाद हुआ था. सोचना दिलचस्प है कि जहांगीर, शाहजहां और औरंगज़ेब की रगों में राजपूती खून भी था. फिर राजपूतों को मुग़लों के नाम से परहेज़ क्यूं? उन्हें तो फ़क्र होना चाहिए कि उस दौर के भौगौलिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक हिंदुस्तान में राजपूत और मुग़ल दोनों ही बराबर के हिस्सेदार रहे हैं और गौरवशाली मुग़ल काल पर उनका भी आधा अधिकार है.

वापस अपनी बात पर आते हैं. जब रानी गर्भवतीं हुईं तो अकबर ने उन्हें फतेहपुर सीकरी के शेख़ सलीम चिश्ती के दरबार में रहने के लिए भिजवा दिया. अकबर की ख्वाहिश थी कि तैमूर का वंशज चिश्ती के साए में ही दुनिया में आये. बताते हैं कि शेख़ सलीम चिश्ती ने अकबर को तीन बेटे होने का वरदान दिया था. इस पर अकबर ने कहा कि वे पहला बेटा शेख़ की सरपरस्ती में देंगे. लिहाज़ा, जहांगीर के शुरुआती नाम ‘शेखू’ और ‘सलीम’ के चिश्ती के ही नामों पर धरे गए थे.

जहांगीर जिस तख़्त पर बैठा, वह बाबर, हुमायूं और अकबर के जीवन भर की लड़ाइयों का नतीजा था. मेवाड़ और दक्कन के कुछ इलाकों के अलावा अकबर ने पूरे हिंदुस्तान को एक धागे में पिरो दिया था. जहांगीर ने मेवाड़ को इसमें मिलाया पर इसका भी सूत्रधार शाहजहां था. कहते हैं कि जहांगीर न तो महत्वाकांक्षी था और न ही उसमें कोई ख़ास जीवट था.उसके जीवन के अंतिम कुछ वर्षों में शासन की बागडोर नूरजहां के हाथों में आ गई थी.

जहांगीर : अकबर का वारिस, नूरजहां का शौहर और शाहजहां का बाप होना ही जिसकी क़ाबिलियत थी

ताज्जुब की बात है कि जिसकी रगों में तैमूरी, चंगेज़ी और राजपूती खून दौड़ रहा हो, जो बाबर और अकबर का वंशज हो, वह सिर्फ नाम का ‘जहांगीर’ था!

सल्तनत-ए-हिंदुस्तान में अकबर के इंतेकाल का मातम सात दिन चला. आठवें दिन यानी 24 अक्टूबर, 1605 को आगरा दरबार में सलीम के नाम की नौबत बज उठी. इन्हीं दिनों के आसपास तुर्की में भी सलीम नाम का शासक था. ‘सलीम’ नाम को लेकर दुनिया और इतिहास में पशोपेश न हो, इसलिए मुग़ल सलीम ने खुद के ‘जहांगीर’ होने का ऐलान करवा दिया. ‘जहांगीर’ यानी दुनिया को जीतने वाला.

हालांकि सब इस बात से मुतमइन नहीं. चर्चित पत्रकार शाज़ी ज़मां अपनी किताब ‘अकबर’ लिखते हैं कि सलीम को हिंदुस्तान के पीरों और फ़कीरों ने कभी बताया था कि बादशाह अकबर के गुज़र जाने के बाद नूरुद्दीन नाम का शख्स सुल्तान बनेगा, सो सलीम ने अपना नाम नूरुद्दीन जहांगीर बादशाह रख लिया.

जो भी है, सलीम के खाते में ऐसी कोई अहम लड़ाई या ऐसा कोई अहम वाक़या दर्ज़ नहीं है, जो उसके नाम की गवाही देती हो. ताज्जुब की बात है, जिसकी रगों में तैमूरी, चंगेज़ी और राजपूती खून दौड़ रहा हो, जो बाबर और अकबर का वंशज हो, वह सिर्फ नाम का ‘जहांगीर’ था!

सलीम के पैदा होने का क़िस्सा मुग़ल इतिहास में बड़े चाव से लिखा जाता है. सलीम बादशाह अकबर और अमर के राजा भारमल की बेटी की संतान था. कोई उसका नाम जोधा बोलता है, तो कोई हीरकंवर. कुछ लोग उसे आमेर का न होकर जोधपुर का बताते हैं. इससे याद आता है कि कुछ साल पहले ‘जोधा अकबर’ फ़िल्म में जोधा को अकबर की पत्नी बताने पर विवाद हुआ था. सोचना दिलचस्प है कि जहांगीर, शाहजहां और औरंगज़ेब की रगों में राजपूती खून भी था. फिर राजपूतों को मुग़लों के नाम से परहेज़ क्यूं? उन्हें तो फ़क्र होना चाहिए कि उस दौर के भौगौलिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक हिंदुस्तान में राजपूत और मुग़ल दोनों ही बराबर के हिस्सेदार रहे हैं और गौरवशाली मुग़ल काल पर उनका भी आधा अधिकार है.

वापस अपनी बात पर आते हैं. जब रानी गर्भवतीं हुईं तो अकबर ने उन्हें फतेहपुर सीकरी के शेख़ सलीम चिश्ती के दरबार में रहने के लिए भिजवा दिया. अकबर की ख्वाहिश थी कि तैमूर का वंशज चिश्ती के साए में ही दुनिया में आये. बताते हैं कि शेख़ सलीम चिश्ती ने अकबर को तीन बेटे होने का वरदान दिया था. इस पर अकबर ने कहा कि वे पहला बेटा शेख़ की सरपरस्ती में देंगे. लिहाज़ा, जहांगीर के शुरुआती नाम ‘शेखू’ और ‘सलीम’ के चिश्ती के ही नामों पर धरे गए थे.

जहांगीर जिस तख़्त पर बैठा, वह बाबर, हुमायूं और अकबर के जीवन भर की लड़ाइयों का नतीजा था. मेवाड़ और दक्कन के कुछ इलाकों के अलावा अकबर ने पूरे हिंदुस्तान को एक धागे में पिरो दिया था. जहांगीर ने मेवाड़ को इसमें मिलाया पर इसका भी सूत्रधार शाहजहां था. कहते हैं कि जहांगीर न तो महत्वाकांक्षी था और न ही उसमें कोई ख़ास जीवट था.उसके जीवन के अंतिम कुछ वर्षों में शासन की बागडोर नूरजहां के हाथों में आ गई थी.

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