अंग्रेजों ने भारत की भांति नेपाल पर कभी कब्ज़ा क्यों नहीं किया ? जानिए इसके पीछे कि वजह

1814 से 1816 तक एंग्लो नेपाल युद्ध या जिसे गोरखा युद्ध भी कहा जाता है लड़ा गया था। यह युद्ध गोरखा साम्राज्य जो आज के जमाने का नेपाल है और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच में लड़ा गया था। वास्तव में उस समय अंग्रेजो का पूरे भारत पर कब्जा नहीं था।सिख साम्राज्य भी अपने शिखर पर था तीन एंगल मराठा युद्ध हो चुके थे और गोरखा साम्राज्य यानी कि नेपाल भी एक विस्तार वादी राज्य था उन्होंने पूर्व में सिक्किम तथा पश्चिम में कुमाऊं तथा गढ़वाल पर कब्जा किया था इसके अलावा उनकी इच्छा थी कि वह ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रभाव वाले अवध क्षेत्र पर भी कब्जा करें।उस युद्ध का एक कारण यह भी था कि नेपाल दरबार ने ईस्ट इंडिया कंपनी को तिब्बत जाने का रास्ता नहीं दिया।

ईस्ट इंडिया कंपनी तिब्बत से व्यापार करना चाहती थी और तिब्बत जाने का रास्ता गोरखा यानी नेपाल से होकर निकलता था।

इस युद्ध का परिणाम यह हुआ की सुगौली की संधि दोनों राज्यों के बीच हुई जिसके परिणाम स्वरूप अंग्रेजों को गोरखा राज्य का गढ़वाल और कुमाऊं हिस्सा जो आज का उत्तराखंड है,मिल गया और अंग्रेजो के राज्य के अंत के बाद उत्तराखंड भारत का एक राज्य बना।

इस संधि के परिणाम स्वरूप अंग्रेजों ने दोबारा नेपाल पर आक्रमण नहीं किया जिस कारण नेपाल पर अंग्रेजों का कब्जा नहीं हुआ

इसका एक दूसरा कारण था कि अंग्रेजों को भारत में बहुत ज्यादा विरोध का सामना करना पड़ रहा था सिख साम्राज्य और मराठा साम्राज्य से युद्ध के कारण अंग्रेजों के पास संसाधनों की काफी कमी थी जिसके कारण उन्होंने तिब्बत से व्यापार का विचार त्याग दिया।

मूल कारण

नेपाल एक विस्तार वादी साम्राज्य था

गोरखा लड़ाकों ने अंग्रेजों को भी प्रभावित किया जिसके फलस्वरूप भारतीय सेना में आज तक गोरखा रेजीमेंट है जो कि ब्रिटिश सेना में भी लड़े थे

जब दो विस्तार वादी साम्राज्य भिड़ते हैं तो दोनों को ही कहीं ना कहीं पर संतोष करना पड़ता है और सुगौली की संधि उस संतोष को दर्शाती है अंग्रेजों ने तिब्बत का विचार त्याग तो गोरखा ने अवध का विचार त्याग दिया।

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