सरस्वती नदी कैसे लुप्त हो गयी? क्या अभी भी सरस्वती नदी गुप्त रास्ते से बहती हैं? जानिए

हम काफी लंबे समय से यह बात सुनते आ रहे हैं की प्रयागराज में तीन नदियों का संगम है जिसमें से गंगा, यमुना और सरस्वती नदी शामिल है

लेकिन अगर प्रमाण को देखा जाए जो हमें वेदों में भी मिलते हैं और वैज्ञानिक रूप से आज उपलब्ध भी है उसके अनुसार प्रयागराज में सरस्वती नदी हो ही नहीं सकती

तो फिर ऐसा क्यों कहा गया कि प्रयागराज में सरस्वती नदी का संगम है?

हम बात करते हैं 6000 वर्ष पहले की उस समय भारत में जो नदियां बहा करती थी वह आज की नदियों से पूरी तरह से अलग थी यह उत्तर भारत की आज की नदियों का मार्ग है

जिसमें आप नीले रंग से गंगा को लाल रंग से यमुना को काले रंग से सतलुज को देख सकते हैं यह वर्ष 2019 का मानचित्र है और आप सभी सहमत होंगे कि 2019 में नदियां इस तरह बहती है

अब बात करते हैं 5000 वर्ष पहले की, 5000 वर्ष पहले भारत में बहने वाली नदियों मार्ग बिल्कुल ही अलग था आज के मार्ग से, अगर आप ध्यान से देखें तो पाएंगे की नीले रंग का मार्ग गंगा का मार्ग, लाल रंग का मार्ग यमुना का मार्ग है काले रंग का मांग सतलुज का है और पीले रंग का मार्ग सरस्वती नदी का है

क्या आपको दोनों में कुछ अंतर दिखा असल में सरस्वती नदी हिमालय के आज के यमुनोत्री ग्लेशियर से निकला करती थी और बंदरपूंछ श्रंखला से होते हुए यह अंबाला जनपद में मैदानों में उतरती थी उसके बाद यह अंबाला कुरुक्षेत्र बहती हुई राजस्थान में जा मिलती थी और राजस्थान के बाद गुजरात के कच्छ में अपना जल अरब सागर में गिरा देती थी

लेकिन बाद में सरस्वती नदी का मार्ग सूख गया क्यों?

क्योंकि जो जल सरस्वती नदी को यमुनोत्री ग्लेशियर का करता था वह जल सरस्वती नदी को मिलना बंद हो गया था और यहीं पर सारा खेल हुआ 5000 वर्ष पूर्व शिवालिक और यमुनोत्री ग्लेशियर की बीच धरती में थोड़ा सा उत्थान हुआ यानी कि यह धरती थोड़ी ऊपर की तरफ उठी भूगोल में ऐसा होता रहता है

जब यह धरती ऊपर की तरफ उठी तो सरस्वती नदी का प्राकृतिक बहाव अवरुद्ध हो गया, नतीजा यह हुआ किस सरस्वती नदी का जल दो भागों में बट गया पहला भाग यमुना में जाने लगा और दूसरा भाग सतलुज नदी में

सतलुज नदी में अचानक से जल भर जाने के कारण सतलुज नदी अपने मार्ग में कटाव करने लगी और पहले जो नदी अरब सागर में गिरती थी वह अपने मार्ग में कटाव करते-करते कटाव करते-करते सिंधु नदी में जा मिली

सरस्वती नदी का दूसरा पानी यमुना को प्राप्त हुआ और यमुना नदी जो पहले सरस्वती नदी की सहायक नदी थी और सहारनपुर करनाल होते हुए राजस्थान में सरस्वती नदी में मिल जाती थी उसमें भी बाद में भीषण कटा हुआ और बाद में उसने अपना मार्ग पूरी तरह से बदल कर गंगा नदी में मिला लिया

और इस तरह से सरस्वती नदी के जल का अपहरण करके सतलुज और यमुना नदी दो बड़ी नदियां बन गई आज भी सरस्वती नदी का सूखा हुआ मार्ग राजस्थान और हरियाणा में दिखाई देता है.

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