सरकार जितने रुपये छापती है, उतने ही पैसों के बदले सोना क्यों रखना पड़ता है?
यह गलत धारणा है कि सरकार को रूपये छापने के लिए सोना रखना पड़ता है। सरकार को नोट छापने के लिए कुछ नहीं रखना पड़ता। सरकार जब मर्जी हो तब रूपये छाप सकती है और छापती भी रहती है। और सरकार ( RBI ) जब भी रूपये छापती है, इन्फ्लेशन बढ़ जाता है।
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पहले विश्व युद्ध एवं फिर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कई देश कंगाल होने लगे, और उन्होंने गोल्ड स्टेंडर्ड के अनुपात को गिराना शुरू कर दिया था।
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द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका ने कई देशो पर डॉलर स्टेंडर्ड थोप दिया। उन्होंने नेताओ को धमकाया और पेड आर्थिक विशेषज्ञों के माध्यम से जनता को समझाया कि गोल्ड स्टेंडर्ड बकवास सिस्टम है, और उन्हें विदेशी मुद्रा कोष सोने की जगह डॉलर में रखना चाहिए। गोल्ड स्टेंडर्ड का अनुपात तो सस्टेन नहीं किया जा सकता, यह बात ठीक है, किन्तु इसकी जगह हमें डॉलर स्टेंडर्ड क्यों रखना चाहिए , इसका जवाब कोई भी पेड आर्थिक विशेषग्य ठीक से नहीं देता।
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डॉलर स्टेंडर्ड डालने के बाद अमेरिका ने धड़ाधड़ डॉलर छापकर देशो को पकडाने शुरू किये और बदले में उनसे सोना ले लिया। आज दुनिया में सबसे ज्यादा सोना अमेरिका के पास है – 8000 टन !! अब सब देश फोरेक्स डॉलर में रखने लगे तो डॉलर की डिमांड बढ़ी और डॉलर अंतराष्ट्रीय करेंसी के रूप में स्थापित हो गया। इस तरह अमेरिका ने कागजो के बदले पूरी दुनिया से सोना खींचा !!
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भारत के पास अब फोरेक्स के रूप में ज्यादातर सिर्फ दो तरह के पेपर है –
- एक पेपर जो अमेरिका छापता है, और
- एक पेपर जो भारत छापता है !!
और इन दोनों की मेटेरियल वैल्यू जीरो है !! अभी हमारे पास जितना फोरेक्स है उसमे सोने का प्रतिशत लगभग 6% के आस पास है। बाकी सब कागज है।
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समाधान ?
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हमें अपने फोरेक्स का एक बड़ा हिस्सा क्रूड ऑयल के रूप में रखना शुरू करना चाहिए। डॉलर सिर्फ उतना रखें जितनी लेन देन में जरूरत है। धीरे धीरे क्रूड ऑयल का अनुपात बढ़ाते जाए। जब भी तेल के दाम गिरे हमें क्रूड ऑयल ले लेना चाहिए। 50% तक हमें फोरेक्स तेल के रूप में रख सकते है। इस तरह यह हमारा स्ट्रेटेजिक रिजर्व हो जाएगा। ताकि कभी कुछ झमेला ( यानी युद्ध या मंदी वगेरह ) आये तो ये तेल काम आ सके।