सम्राट विक्रमादित्य कालीन ‘परियों’ की सत्यता क्या है? क्या आज भी ‘परियां’ अस्तित्व में हैं?

अनुश्रुत विक्रमादित्य, संस्कृत और भारत के क्षेत्रीय भाषाओं, दोनों में एक लोकप्रिय व्यक्तित्व है।

उनका नाम बड़ी आसानी से ऐसी किसी घटना या स्मारक के साथ जोड़ दिया जाता है, जिनके ऐतिहासिक विवरण अज्ञात हों, हालांकि उनके इर्द-गिर्द कहानियों का पूरा चक्र फला-फूला है। संस्कृत की सर्वाधिक लोकप्रिय दो कथा-श्रृंखलाएं हैं वेताल पंचविंशति या बेताल पच्चीसी (“पिशाच की 25 कहानियां”) और सिंहासन-द्वात्रिंशिका (“सिंहासन की 32 कहानियां” जो सिहांसन बत्तीसी के नाम से भी विख्यात हैं)। इन दोनों के संस्कृत और क्षेत्रीय भाषाओं में कई रूपांतरण मिलते हैं।

पिशाच (बेताल) की कहानियों में बेताल, पच्चीस कहानियां सुनाता है,

जिसमें राजा बेताल को बंदी बनाना चाहता है और वह राजा को उलझन पैदा करने वाली कहानियां सुनाता है और उनका अंत राजा के समक्ष एक प्रश्न रखते हुए करता है। वस्तुतः पहले एक साधु, राजा से विनती करते हैं कि वे बेताल से बिना कोई शब्द बोले उसे उनके पास ले आएं, नहीं तो बेताल उड़ कर वापस अपनी जगह चला जाएगा| राजा केवल उस स्थिति में ही चुप रह सकते थे, जब वे उत्तर न जानते हों, अन्यथा राजा का सिर फट जाता| दुर्भाग्यवश, राजा को पता चलता है कि वे उसके सारे सवालों का जवाब जानते हैं; इसीलिए विक्रमादित्य को उलझन में डालने वाले अंतिम सवाल तक, बेताल को पकड़ने और फिर उसके छूट जाने का सिलसिला चौबीस बार चलता है। इन कहानियों का एक रूपांतरण कथा-सरित्सागर में देखा जा सकता है।

सिंहासन के क़िस्से, विक्रमादित्य के उस सिंहासन से जुड़े हुए हैं जो खो गया था और कई सदियों बाद धार के परमार राजा भोज द्वारा बरामद किया गया था। स्वयं राजा भोज भी काफ़ी प्रसिद्ध थे और कहानियों की यह श्रृंखला उनके सिंहासन पर बैठने के प्रयासों के बारे में है। इस सिंहासन में 32 पुतलियां लगी हुई थीं, जो बोल सकती थीं और राजा को चुनौती देती हैं कि राजा केवल उस स्थिति में ही सिंहासन पर बैठ सकते हैं, यदि वे उनके द्वारा सुनाई जाने वाली कहानी में विक्रमादित्य की तरह उदार हैं। इससे विक्रमादित्य की 32 कोशिशें (और 32 कहानियां) सामने आती हैं और हर बार भोज अपनी हीनता स्वीकार करते हैं। अंत में पुतलियां उनकी विनम्रता से प्रसन्न होकर उन्हें सिंहासन पर बैठने देती हैं।

बत्तीस पुतलियां

पौराणिक कथाओं के आधार पर न्यायप्रिय सम्राट विक्रमादित्य की बत्तीस पुतलियां हुआ करती थीं। ये पुतलियां राजा को न्याय करने में सहायक होती थीं। यह एक लोककथा संग्रह भी कहलाता है। इसी में बेताल पच्चीसी का भी जिक्र मिलता है। प्रजावत्सल, जननायक, प्रयोगवादी एवं दूरदर्शी महाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। सिंहासन बत्तीसी भी 32 कथाओं का संग्रह है, जिसमें 32 पुतलियां विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कथा रूप में वर्णन करती हैं। विक्रमादित्य जनता के कष्टों को जानने के लिए छद्मवेष धारण कर रात में भम्रण करते थे। सम्राट विक्रमादित्य कालीन परियों की सत्यता की पुष्टि दस्तावेजों से लगाए जा सकते हैं, लेकिन

आज विज्ञान परियों को मानवीय फंतासी मानता है। ईश्वर, देवी-देवताओं, परलोक, राक्षस, शैतान, प्रेतात्माओं और स्वर्ग-नरक की तरह मानव मन की अनूठी कल्पनाओं में से एक। उसके अनुसार परियों की कल्पना के पीछे आदिकाल से लोगों में चला आ रहा यह विश्वास है कि दुनिया की सभी चीज़ों – हवा, जंगल, पेड़, फल-फूल, नदी, झरनों, पहाड़ों, पत्थरों और यहां तक कि परछाईयों तक में आत्मा है जो हमारे जीवन को प्रभावित और नियंत्रित कर सकती है। कालान्तर में हमें प्रभावित कर सकने वाले प्रकृति के इन सभी अवदानों का लोगों ने मानवीयकरण किया।
परियां मानवीकरण की इसी प्रक्रिया की उपज हैं। यह बात सही तो लगती है, लेकिन यह सवाल तो तब भी अनुत्तरित रह जाता है कि परियां अगर वाक़ई कल्पना की उड़ान हैं तो यह कैसे संभव हुआ कि प्राचीन दुनिया में जब लोगों के बीच कोई आपसी संपर्क नहीं था तब परियों की लगभग एक जैसी कथाएं एक साथ दुनिया भर की लोकगाथाओं, गीतों, कल्पनाओं, स्वप्नों और साहित्य का हिस्सा कैसे बन गईं ? परग्रही प्राणियों के शोधकर्ता मानते हैं कि परियां प्राचीन काल में दूसरे ग्रहों से धरती पर आने वाले एलियन थीं जिनकी उड़ने की क्षमता और मानवेत्तर शक्तियों के आगे लोग नतमस्तक हुए। कालान्तर में मौखिक परंपरा से परियों के रूपरंग के साथ उनकी दयालुता, निश्छल बाल प्रेम, असाधारण शक्तियों और चमत्कार के किस्से-दर-किस्से जुड़ते चले गए।

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