सन् 1000-1027 के बीच महमूद गजनवी ने भारत पर कितने बार आक्रमण किया था?

कूल मिलाकर मेहमूद ने भारत भूमि पर सत्तरह बार आक्रमण किया. सोलहवां और सबसे प्रसिद्ध आक्रमण उसने सोमनाथ मंदिर प्रभास पाटन गुजरात पर किया. इसने शिवलिंग तोड़ा, मंदिर के पुजारी का कत्ल किया और हिंदू राजाओं का आत्म विश्वास तोड़कर कमजोर कर दिया. सत्रहवाँ और अंतिम आक्रमण इसने पंजाब के जाटों पर किया. जिन्होंने इससे सोमनाथ कि लूट का माल गज़नी के रास्ते मे पंजाब मे ही छिन लिया था.

मेहमूद और शाही राजाओं का संघर्ष : मेहमूद ग़ज़नवीने भारत पर 999 से आक्रमण शुरू किये. इसके पिता सुबुक्तगीन का अफ़ग़ानिस्तान के शाही राजा जयपालदेव से तकरार रहती थी. दोनो राज्यों की सीमाएं मिलती थी. सुबुक्तगीन के साथ युध में मेहमूद ने जयपाल के विरुद्ध भाग लिया था. लेकिन सुबुक्तगीन और जयपाल का युद्ध में कोई फैसला नहि हुआ और बराबर छोटा तथा समझौता हो गया.

सुबुक्तगीन की मृत्यु कै बाद मेहमूद सीधे बादशाह नहि बना और सत्ता संघर्ष मे विजयी होने पर ही राजा बना. मेहमुड़ ने 1001 में शाही राजा जयपाल पर आक्रमण किया और जयपाल बुरी तरह हार से आहत हुआ और अपने बेटे आनंदपाल को राज देकर आत्मग्लानि में आत्मदाह किया.

आनंदपाल पर भी मेहमूद ने 1005 में आक्रमण किया. हराया और उसकों मुसलमान बना दिया. बाद में आनंदपाल फिर से हिंदू बन गया फिर 1008 में आनंदपाल के बेटे त्रिलोचनपाल पर भी आक्रमण किया. इस समय इसके साथ भारतवर्ष के सभी बडे हिंदू राजाओं कि सेना भी थी जिसमे भारत कै सभी राजाओं ने शाही राजाओं की मदद मे सेना भेजी. हिंदू जीत रहे थे लेकिन त्रिलोचनपाल का हाथी मुसलमानो के अग्नि वाणों से विचलित होकर घबराकर भाग निकला. हिंदू सेना राजा को भागता देखकर भागने लगी. इस तरह संयुक्त हिंदू सेना भी हार गयी और अब भारत के हिंदू राजाओं में ग़ज़नवी का खौफ फेल गया. सब हिंदू राजा इसे गज़नी का दैत्य कहने लगे और इसका सामना करने के बजाय मैदान छोड़ राजधानी खाली कर भाग जया करते थे. इस तरह मेहमूद को जनता को लूटना और उनको मुसलमान बनाना बहुत आसन हो गया.

कश्मीर पर भी आक्रमण किया लेकिन मौसम कि खराबी के कारण सफलता नहि मिली.

भारत के हिंदू राजाओं मे मेहमूद का खौफ : इसके बाद इसने 1010 में थानेश्वर चक्रपाणि मंदिर लुटा. आगे बढ़कर कन्नौज तक गया. बीच में मथुरा भी लुटा. कन्नौज में राजा राजयपाल अपना दुर्ग खाली कर भाग गया और बारी कै किले मे शरण लि. वहां भी पकड़ा गया. पुरा राज्य लुटा गया खजाना लूट लिया. कन्नौज के राजा राजयपाल को अपना अधीनकर उसे ही राजा बनाकर मेहमूद ग़ज़नी लोट गया.

चंदेल संघर्ष : कालिंजर के राजा विद्याधर चंदेल ने राजयपाल पर आक्रमण कर उसे हरा कर अपदस्थ कर दिया. उसके पुत्र त्रिलोचनपाल को कन्नौज का राजा बना दिया और अपने अधीनस्थ कर लिया. खबर ग़ज़नी पहुंची. मेहमूद चढ़ आया. कन्नौज को अधिकृत किया त्रिलोचनपाल राजधानी छोड़ भाग गया. विद्या धर चंदेल भी मदद को आगे न आया और अपनेज़बूत किले कालिंजर मे ही बैठा रहा. फिर मेहमूद आगे कालिंजर तक आया. यह आक्रमण उसने 1018 में चन्देलों पर कालिंजर में किया. दोनों फ़ौज आमने सामने हुयी. न कोई हारा न कोई जीता. फिर दुबारा 1020 में कलीनजर पर मेहमूद ने दूसरा आक्रमण किया. इसमें दोनों में कुछ सन्धि सि हो गयी. लेकिन मामला बराबर का ही रहा. यही एक राजा था जिसने ग़ज़नवी को सही टककर डी.

सोमनाथ पर आक्रमण : इसने सबसे प्रसिद्ध और भयानक आक्रमण 1025 में सोमनाथ शिव मंदिर शिवालय पर किया. यह आक्रमण इसने मुल्तान सिंध राजस्थान होते हुए किया और पूरी तैयारी के साथ किया. अलबेरुनी ने इसका पुरा विवरण दिया है. आचार्य चतुरसेन के उपन्यास सोमनाथ में भी इसका विवरण मिलता है. लाहौर में औलिया से सलाह मश्विरा करके ही उसकी आज्ञा लेकर ही मंदिर लुटने आया था. लाहौर पंजाब कि हि राजधानी थी और शाही राजाओं के हार जाने पर ग़ज़नवी के ही अधिकार में थी. यही पर अलबेरुनी और औलिया रहते थे. अफ़ग़ानिस्तान से पंजाब तक कै क्षेत्र पर मेहमूद ने अधिकार कर लिया और यहां पर उसके ही वंश कै लोग शाशन करने लगे.

मेहमूद ने अरब के ख़लीफ़ाओंसे अपने लिए बुतशिकन कि उपाधि ले लि थी और इस्लाम का सच्चा सेवक बन गया था. इसने मंदिर भी बहुत तोड़े. मुर्तिया खंडित कि. इस्लाम को खूब बढ़ाया. इसने यमीनुद्दौला का ख़िताब भी ले लिया था. सोमनाथ लुटने के लिए अजमेर के चौहान राजा धर्मगजदेव को हराया था पुष्कर में. फिर गुजरात कि राजधानी अन्हिलवाड़ा से होता हुआ सोमनाथ पहुंचा. पाटन कै सोलकी राजा चामुंडराय अपनी राजधानी छजोड़कर बिना सामना किये ही भाग गए. देवदासियों को मंदिर से मुक्त कराकर, दासी गुलाम बनाकर अफ़ग़ानिस्तान ले गया. अफ़ग़ानिस्तान में मीनारे दो दीनार बनवायी और वहां पर हिन्दोस्तान से लाये गए गुलामो कि मंडी लगती थी और हिंदुस्तानी आदमी कि कीमत डो दीनार रखी जाती थी जो चाहे खरीद सकता था.

सोमनाथ की लूट का माल यह ग़ज़नी नहि ले जा पाया. इसे बीच मे ही कच कै रण से होकर जाना पढ़ा क्योंकि इसके सीधे रास्ते मे मालवा कै राजा भोज ने अपना मोर्चा जमा लिया था. कच कै रण मे इसे अपनी लूट का माल भी खोना पढ़ा और बहुत सारी फ़ौज भी पानी की कमी से मर गयी. इसको जातो ने लुटा. अंतिम आक्रमण पंजाब के जाटों को सबक सिखाने के लिए 1026 में किया. इसमें ज हारे परन्तु लड़ाई भयंकर हुयी. 1030 मे मेहमूद कि मृत्यु हो गयी. मेहमूद ने अफ़ग़ानिस्तान के ही गौर प्रान्त के रहने वाले गौरी लोगों को जो पहले बुद्ध थे, इस्लाम मे बदलकर मुसलमान बनाया. ये शांत प्रवृत्ति वाले बौद्ध मुसलमान बनकर इतने भीषण योद्धा हिये कि इन्होने सन 1150 आते आते ही ग़ज़नवियों से अफ़ग़ानिस्तान पंजाब छिन लिया और स्वयं बादशाह बन गए. इसी वंश मे मुहम्मद शाहबुद्दीन गौरी हुआ जिसने भारत मे तुर्क राज्य की स्थापना की.

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