श्रीयंत्र के बारे में कुछ रोचक तथ्य कौन से हैं?

श्रीयंत्र या श्रीचक्र ऐसा पवित्र ज्यामितिय प्रतिरूप है, जिसका उपयोग सहस्राब्दियों तक साधकों और उनके अनुगामियों ने ब्रह्मांड के रहस्यों को जानने के लिए किया।

नवचक्रों से बने इस यंत्र में चार शिव चक्र, पांच शक्ति चक्र होते हैं। इस प्रकार इस यंत्र में 43 त्रिकोण, 28 मर्म स्थान, 24 संधियां बनती हैं। तीन रेखा के मिलन स्थल को मर्म और दो रेखाओं के मिलन स्थल को संधि कहा जाता है। अद्वैत वेदान्त के सिद्दान्तों के मुताबिक यह ज्यामितिय पद्धति सृष्टि (जो आप चाहते हैं) या विनाश (जो आप नहीं चाहते) के विज्ञान में महारत हासिल करने की कुंजी है

श्रीयंत्र की महिमा, वर्चस्व या महत्व को हम एक आलेख के माध्यम से वर्णित नहीं कर सकते। लेकिन इसकी उन विशेषताओं पर प्रकाश जरूर डाल सकते हैं, जिनसे सनातन धर्म को मानने वाले शायद ही परिचित हों।

श्रीयंत्र के अाध्यात्मिक ज्यामितिय प्रतिरूपों को जानने और समझने वाले लोगों की संख्या गिनी-चुनी है। ऐसे लोग या तो किसी योगी से संबद्ध होते हैं या फिर तंत्र के श्री विद्या शिक्षण संस्थान से जुड़े होते हैं। ये लोग आदि शक्ति देवी जगदम्बा के उपासक होते हैं।

यहां हम श्रीयंत्र के कुछ अद्भुत और आश्चर्यजनक तथ्यों से आपको रूबरू कराने जा रहे हैं।

  1. श्रीयंत्र न केवल इस ब्रह्मांड का सुक्ष्म रूप है, बल्कि मानव शरीर का भी।

श्रीयंत्र की प्रत्येक परिधि मानव शरीर के एक चक्र को परिलक्षित करता है। और सतत घूमने वाला और विस्तारशील श्रीयंत्र इस ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करता है।

  1. टोनोस्कोप (विभिन्न ध्वनियों के लिए प्रतिमान स्थापित करने का यन्त्र) में अॉम का घोष श्रीयंत्र के सदृश एक ज्यामितिय प्रतिमान का निर्माण करता है।

क्या यह सिर्फ संयोग है? लगता तो नहीं है।

सबसे पहले सायमेटिक्स की दुनिया की अग्रदूत डॉ. हान्स जेनी ने आधुनिक दुनिया में अन्योन्याश्रय संबंध को स्थापित किया था। संतों ने ऑम की पवित्र ध्वनि को उत्त्क्रम अभियांत्रिकी (रिवर्स इंजिनीयरिंग) के माध्यम से ज्यामितिय आकृति में बदल दिया।

माना जाता है कि अंक संख्या 108 ऑम और श्रीयंत्र का सांख्किीय प्रतिनिधि है, जो हमें आम तौर पर उपलब्ध है।

  1. यह चक्र पांच नीचे की तरफ जाने वाले त्रिकोणों और चार ऊपर की तरफ जाने वाले त्रिकोणों के आरोपण से निर्मित होता है, जो स्त्री और पुरुष का सम्मिश्रण होता है।

नीचे की तरफ जाने वाले त्रिकोण स्त्री के विशिष्ट तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। जैसे कि शक्ति। और ऊपर जाने वाले त्रिकोण पुरुष के विशिष्ट तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। जैसे कि शिव।

सभी 9 अन्तःपाशी त्रिकोणों से 43 छोटे त्रिकोणों की रचना होती है, और इनमें से प्रत्येक त्रिकोण एक देवता का प्रतिनिधित्व करता है।

  1. श्रीचक्र के बारे में कहा जाता है कि यह न केवल देवी की असीमित शक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह देवी का ज्यामितिय रूप है।
  2. यह किसी के प्रज्ञा की रचना, या वेदान्त के केन्द्रीय उपदेशों का प्रतीक भर नहीं है। बल्कि यह माना जाता है कि इस ज्यामितिय स्वरूप का आभास योगियों को समाधि के दौरान होता है।
  3. श्रीयंत्र की पूजा-अर्चना तीन प्रकारों- एक 2डी रूप में और दो 3डी रूप में की जाती है।
  4. किसी भी योगी के लिए श्रीयंत्र एक धार्मिक यात्रा सरीखा है, जो आधार से शुरू होकर एक के बाद एक पग बढ़ाता हुआ केन्द्र की तरफ बढ़ता है और फिर ब्रह्मांड से मिल जाता है।

यह एक आध्यात्मिक यात्रा है जो साधकों को आत्मज्ञान की तरफ ले जाता है।

  1. श्रीयंत्र की यह ज्यामितिय गणना इस कदर जटिल है कि गणितज्ञ इसे देख चकित होते रहते हैं। गणितज्ञ इस बात से आश्चर्यचकित हैं कि आधुनिक गणित का ज्ञान न होने के बावजूद वैदिक काल के लोगों ने कैसे इसकी रचना की होगी।

इस ज्यामितिय आकृति के बारे में सैकड़ों वर्ष पहले वैदिक काल के लोगों को पता था। इसे पी, फी या स्वर्ण अनुमान के रूप में जाना जाता था।

आज की तारीख में कम्प्यूटर से इस तरह की आकृति की रचना आसानी से की जा सकती है। लेकिन अगर किसी को कागज पर लिखकर इसकी रचना करना पड़े तो शायद पूरा जीवन भी कम पड़े। श्रीयंत्र की परिशुद्ध आकृति पर आज के कुछ गणितज्ञ बस इतना ही कहते हैं, वैदिक काल में भारतीय अपनी कल्पनाशीलता का उपयोग बेहतर करते थे। यह उसी का नतीजा है।

  1. श्रीयंत्र या श्रीचक्र साधकों को ब्रह्मांडीय चेतना से मिलाने की कोशिश करता है। माना जाता है कि श्रीचक्र एक ऐसा यंत्र है जो खुद में ब्रह्मांडीय ऊर्जा को समेटे हुए है। यह ब्रह्मांड में मौजूद पवित्र ध्वनियों का ज्यामितिय रूप है ।
  2. बेंगलूरू से 335 किलोमीटर दूर श्रिंगेरी मठ में एक श्रीयंत्र या श्रीचक्र संरक्षित है। यह आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित पहला मठ है।

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