शिव को अर्द्धनारीश्वर क्यों कहा जाता है? जानिए वजह
चाम्पेयगौरार्धशरीरकायै कर्पूरगौरार्धशरीरकाय ।
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ।।
अर्थ – आधे शरीर में चम्पापुष्पों-सी गोरी पार्वतीजी हैं और आधे शरीर में कर्पूर के समान गोरे भगवान शंकरजी सुशोभित हो रहे हैं। भगवान शंकरजी जटा धारण किये हैं और पार्वतीजी के सुन्दर केशपाश सुशोभित हो रहे हैं । ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकरजी को प्रणाम है ।।
- भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप के आधे भाग में पुरुष रूपी शिव का वास है तो आधे हिस्से में स्त्री रूपी शिवा यानि शक्ति का वास है।
- सृष्टि के निर्माण के हेतु शिव ने अपनी शक्ति को स्वयं से पृथक किया। शिव स्वयं पुल्लिंग के तथा उनकी शक्ति स्त्री लिंग की द्योतक हैं । पुरुष (शिव) एवं स्त्री (शक्ति) का एका होने के कारण शिव नर भी हैं और नारी भी, अतः वे अर्धनरनारीश्वर हैं।
पौराणिक कथा –
ब्रह्मा जी को सृष्टि के निर्माण का जिम्मा सौंपा गया था, तब तक भगवान शिव ने सिर्फ विष्णु और ब्रह्मा जी को ही अवतरित किया था और किसी भी नारी की उत्पत्ति नहीं हुई थी। जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि के निर्माण का काम शुरु किया, तब उन्हें ज्ञात हुआ कि उनकी ये सारी रचनाएं तो जीवनोपरांत नष्ट हो जाएंगी और हर बार उन्हें नए सिरे से सृजन करना होगा।
गहन विचार के उपरांत भी वो किसी भी निर्णय पर नहीं पहुँच पाए। तब अपनी समस्या के सामाधान के लिए वे शिवजी की शरण में गए। उन्होंने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया। ब्रह्माजी के कठोर तप से शिवजी प्रसन्न हुए और ब्रह्मा जी की समस्या के समाधान हेतु शिवजी अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रकट हुए।
इस स्वरूप में शिवजी के शरीर के आधे भाग में साक्षात शिव और आधे भाग में स्त्री रूपी शिवा यानि शक्ति दिखायी दे रहे थे। अपने इस स्वरूप के दर्शन से भगवान शिवजी ने ब्रह्माजी को प्रजनन शील प्राणी के सृजन की प्रेरणा दी। उन्होंने ब्रह्मा जी से कहा कि मेरे इस अर्धनारीश्वर स्वरूप के जिस आधे हिस्से में शिव है वो पुरुष है और बाकी के आधे हिस्से में जो शक्ति है वो स्त्री है। आपको स्त्री और पुरुष दोनों की मैथुनी सृष्टि की रचना करनी है, जो प्रजनन के जरिए सृष्टि को आगे बढ़ा सके।
इस तरह शिव से शक्ति अलग हुईं और फिर शक्ति ने अपनी मस्तक के मध्य भाग से अपनी ही तरह कांति वाली एक अन्य शक्ति को प्रकट किया। इसी शक्ति ने फिर दक्ष के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया।
- शक्ति शिव की अभिभाज्य अंग हैं। शिव नर के द्योतक हैं तो शक्ति नारी की। वे एक दुसरे के पूरक हैं। शिव के बिना शक्ति का अथवा शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। शिव अकर्ता हैं, वे संकल्प मात्र करते हैं; शक्ति संकल्प की सिद्धि करती हैं।. ||ॐ||