लोमश ऋषि और इंद्र की क्या कहानी है ?

एक बार इंद्र ने विश्वकर्मा को आज्ञा दी कि एक ऐसा महल बनाओ जिसमें किसी भी ऐश्वर्य की कमी न हो , उसमें सभी सुख साधन संपन्न वस्तुएँ और सुविधायें हों ।

विश्वकर्मा ने आज्ञानुसार कुबेर इत्यादि की सहायता से महल का निर्माण कार्य शुरू किया ।

नारद जी ने सोचा कि इस इंद्र की मति भ्रष्ट हो गयी है तो इसको जरा रास्ते पर लाया जाए ।

उन्होंने इंद्र को बोला कि एक ऋषि हैं लोमश ऋषि , उनको आमंत्रित करो अपने महल में ।

इंद्र ने लोमश ऋषि को आमंत्रित किया और उनको विविध ऐश्वर्यों से युक्त अपना महल दिखाने लगे ।

लोमश ऋषि एक कौपीन पहने हुए थे , बगल में एक चटाई दबाए हुए और हाथ में कमंडल लिए हुए थे ।

उनके शरीर पर असंख्य रोम ( लोम ) थे ।

इंद्र खुश होकर दिखाते जाते और लोमश ऋषि बड़े ही अनमने ढंग से देखते जाते ।

इंद्र ने लोमश ऋषि से पूछा कि आप कहाँ रहते हैं ? आपका निवास स्थान कहाँ है ?

लोमश ऋषि ने कहा कि मैंने अपना कोई निवास स्थान नहीं बनाया है । इतनी छोटी सी आयु में अपना निवास स्थान बनाकर क्या करूँगा ?? बस एक ये चटाई है जिसको जहाँ रुकना होता है वहाँ बिछाकर सो जाता हूँ और दूसरा ये कमंडल ताकि जल आदि पी सकूँ , कहीं से भी शरीर को चलाने के लिए भोजन मिल जाता है , बाकी का जो समय है वह भगवद भजन में व्यतीत करता हूँ ।

इतनी कम आयु में भगवान का भजन करूँगा कि अपने लिए प्रबंध करूँगा ।

बात करते करते इंद्र की नज़र उनकी छाती पर गयी जहाँ सिक्के के बराबर स्थान खाली था , बाकी का सब जगह शरीर पर बाल ही बाल थे ।

उन्होंने उस स्थान पर बाल न होने का कारण पूछा ।

लोमश ऋषि ने कहा कि जब एक कल्प बीत जाता है तो मेरा एक रोम ( लोम ) अपने आप झड़ जाता है ।

और भगवान शिव के वरदान के कारण जिस दिन मेरे सारे रोम झड़ जायेंगे , उसी दिन मेरी मृत्यु हो जाएगी ।

1 रोम 1 कल्प बीतने पर झड़ता है ।

अब समझिये? 360 दिनों का एक वर्ष होता है ।

चारों युगों की आयु

4320000 वर्ष होती है

सतयुग – 1728000 वर्ष, त्रेतायुग – 1296000 वर्ष

द्वापरयुग – 864000 वर्ष, कलयुग – 432000 वर्ष

चार युगों को चतुर्युग बोलते हैं ।

ये चार युग या चतुर्युग जब 72 बार बीतते हैं तो उसे 1 मन्वंतर बोला जाता है ।

1 मन्वंतर ब्रह्मा जी का एक दिन होता है ।

स्वर्ग के राजा इंद्र का जीवनकाल 72 चतुर्युग (एक मन्वन्तर) का होता है। ब्रह्मा जी के 1 दिन में 14 इंद्र अपना जीवन काल पूरा करते है।

ब्रह्मा‌ जी की आयु 100 वर्ष ।

14 मन्वंतर = 1 कल्प

एक कल्प की आयु

एक कल्प वर्ष की आयु 1008 चतुर्युग के बराबर होती है और

एक चतुर्युग 4320000 वर्ष का होता है ।

एक महाकल्प = 36000 बार तीनों लोकों में प्रलय

एक कल्प – ब्रह्मा जी का एक दिन

एक महाकल्प – ब्रह्मा जी का पूरा जीवन

दिव्य महाकल्प – सात विष्णु जी की मृत्यु यानि एक शिवजी की मृत्यु

इंद्र देव की आयु

इंद्र देव का शासन काल 72 चतुर्युग (चतुर्युग मतलब चार युगों का समूह) का होता है। अर्थात 72 चतुर्युग के बाद इंद्र देव की मृत्यु हो जाती है।

तो जब एक कल्प खत्म होता है तो लोमश ऋषि का एक रोम गिर जाता है ।

लोमश ऋषि की यह बात सुनकर इंद्र को बहुत बड़ा झटका लगा ।

मतलब असंख्य इंद्र इनके सामने आए और गए और अभी असंख्य इंद्र और ब्रह्मा इनके सामने आएंगे जाएंगे , फिर भी यह बोल रहे हैं कि मैं इतने कम आयु में क्या अपने रहने के लिए निवास स्थान बनाऊं !!!!!!!!!!

और एक मैं हूँ जो अपनी क्षुद्र सी आयु में सभी ऐश्वर्यों से युक्त महल बनवा रहा हूँ !!!

बस उसको आत्मज्ञान हुआ , अहंकार नष्ट हुआ और वह तुरंत उनकी शरण में चला गया ।

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