लाल किताब में उल्लिखित ‘निर्दयी ऋण’ क्या है? जानिए
शनि ग्रह के दूषित हो जाने से यह ऋण होता है। जब जन्म पत्रिका में दशम या ग्यारहवें भाव में सूर्य, चंद्र या मंगल का प्रवेश हो जाता है तो वह शनि से पीड़ित होता है
और यही दशा जातक को निर्दयी ऋण का दोषी बना देती है।
पहचान: घर का द्वार दक्षिण दिशा में हो या वह घर किसी बांझ या अनाथ से जमीन लेकर बनाया गया है। घर के मार्ग पर कुओं को ढंककर मकान बनाया हो। घर मालिक को नींद न आए अगर एक बार सो जाए तो जाग नहीं पाए। अचानक ऐसे घरों में अशुभ घटनाएं घटित होने लगती हैं।
कारण: किसी जीव की हत्या की हो या किसी की संपत्ति धोखे से हड़प ली हो।
अनिष्ट प्रभाव: व्यावसायिक स्थल पर आग लगना और आग बुझाने का साधन न होना। घर का अचानक गिरना या आग का लगना। आग में जले हुए को अस्पताल पहुंचाने का प्रबंध न होना, घर बनवाने तक बारिश होना तथा बारिश का बंद न होना।
जातक की करनी से स्वयं की संतान को व ससुराल वालों को बेवजह पुलिस परेशान करे। योग्य संतान नालायक हो जाए। घर के सदस्य चैन से न सो सकें। तत्पश्चात् अपंग हो जाना तथा एक-एक करके परिवार के सदस्यों की मृत्यु होना। कोई तरकीब समझ न आए।
उपाय: जातक अपने रक्त संबंधियों से धन एकत्रित करे और धन से 100 मजदूरों को स्वादिष्ट व उत्तम भोजन कराए। 100 तालाबों से एक-एक मछली लाकर एक ही तालाब में डालकर उन्हें आटे की गोलियां बनाकर खिलावें तथा चकला और बेलन किसी धार्मिक स्थान पर दान दें तथा 43 दिन तक 50 ग्राम सुरमा जमीन में दबाएं तो इस ऋण से जातक को छुटकारा मिल जाता है।