रेलगाड़ी रात के समय बिना चूके पटरी कैसे बदल लेती हैं?

रेलगाड़ी या रेल एंजिन में पटरी बदलने के लिए कोई स्टियरिंग नहीं होता। रेल तो वैसे वैसे चलती है जैसे जैसे उसकी लाइन चलती है, दिन या रात से उसका कोई सम्बंध नहीं है।

रेलगाड़ी की पटरी बदलने की जरूरत केवल रोड साइड स्टेशन या बड़े स्टेशनों पर पड़ती है। यह काम एक साँधा (POINTS & CROSSING) करता है।

साँधा रेल पटरियों की एक ऐसी व्यवस्था होती है जो रेलगाड़ी को एक पटरी से दूसरी पटरी पर ले जाता है। नीचे के चित्र में साँधा या POINTS को दिखाया गया है। पहले उसे देखें, समझें फिर मैं बताता हूँ यह कहाँ से चलता है और उसे कौन चलाता है।

ऊपर चित्र में आपको बाहरी दो पटरियों के अलावा दो नुकीली सी पटरियां अन्दर की तरफ भी दिख रही होंगी, इन्हें स्विच रेल कहा जाता है। एक बाँयीं स्विच रेल है और दूसरी दाँयीं स्विच रेल है। ये दोनों आपस में एक टाई बार से जुड़ी होती हैं जिसे विलियम स्ट्रेचर बार (William Stretcher Bar) कहते हैं। ये दोनों एक साथ चलती हैं। इस प्रकार कभी बाँयीं स्विच रेल बाहरी रेल से चिपकी होती है कभी दायीं। यदि बायीं स्विच रेल बाहरी रेल (Stock Rail) से चिपकी होगी तो दायीं स्विच रेल खुली हुयी होगी।

ऊपर के चित्र में जिस हिसाब से साँधा सैट है उस हिसाब से रेलगाड़ी दायीं ओर की खुली हुयी स्विच रेल की तरफ जायेगी और इस तरह से अपनी पटरी बदलती हुयी दाँयी ओर चली जायेगी। इसी के विपरीत यदि बाँयीं ओर की स्विच रेल खुली होगी तो रेलगाड़ी बाँयीं ओर की तरफ चली जायेगी।

अब ये समझिये की ये साँधा चलता कहाँ से है। आपने देखा होगा कि रेलवे स्टेशन के दोनों ओर एक दोमंजिला ऊँची सी बिल्डिंग होती है, उसे केबिन कहते हैं। इसी केबिन से ये साँधे चलाये जाते हैं और यहीं से रेलगाड़ी को सिगनल भी दिये जाते हैं। ये साँधा एक 33 मिमी. गोल राड से केबिन से एक लीवर से जुड़ा होता है। उस लीवर को खीचने से ये साँधा चलता है। ये तो हुयी मैकेनिकल सिगनलिंग की बात। अब आजकल बिजली के सिगनल आ गये हैं तो ये साँधा भी एक छोटी सी बिजली की मोटर से चलता है। ये मोटर बिजली की केबिलों से केबिन से जुड़ी होती है।

अब आजकल स्टेशन के दोनों ओर की केबिनें भी समाप्त हो गयीं हैं। अब स्टेशन से एक बिजली के पैनल से ये साँधे और सिगनल चलाये जाते हैं। इन साँधों से पहले लगभग 180 मीटर की दूरी पर होम सिगनल लगा होता है। जब किसी स्टेशन का स्टेशन मास्टर अपने पिछले स्टेशन को किसी रेलगाड़ी को आने के लिये लाइन क्लियर दे देता है तब वह साँधे को उस लाइन की ओर सैट करता है, जिस लाइन से उसे रेलगाड़ी निकालनी हो। इसके बाद होम सिगनल देता है, तभी रेलगाड़ी स्टेशन के अन्दर प्रवेश कर पाती है। नहीं तो होम सिगनल पर ही खड़ी रहेगी और सिगनल मिलने का इंतजार करेगी।

सिगनल की जरूरत क्यों पड़ी, इन्हीं साँधों की बजह से। साँधा जिस लाइन की तरफ सैट होगा, उसी लाइन का सिगनल आयेगा। इसे कहते हैं इंटरलॉकिंग (Interlocking). साँधे को बिछाने वाले विभाग को परमानेन्ट वे (P-way) कहते हैं। इसी P-way से बना PWI यानि Permanent Way Inspector, जिसे आज JE या SSE/P-way कहते हैं। साँधे को चलाने की व्यवस्था करने वाले और उसे सिगनल से इंटरलाक करने वाले विभाग को सिगनल विभाग कहते हैं। सिगनल विभाग में पहले PWI के समकक्ष SI ( Signal Inspector) होते थे, लेकिन अब उन्हें JE या SSE/signal कहते हैं। साँधे और सिगनलों को केबिन या स्टेशन से जो चलाता है उस विभाग को परिचालन (Operating) विभाग कहते हैं। यह है पटरी बदलने का पूरा विवरण। आशा करता हूँ कि मैं समझाने में सफल रहा होऊँगा।

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