रुद्राक्ष का इतना महत्व क्यों है और यह शिवजी से किस प्रकार सम्बन्धित है?
रूद्राक्ष के जन्मदाता भगवान शंकर हैं । रूद्र का अर्थ है- शिव और अक्ष का तात्पर्य है-अश्रु, वीर्य अथवा रक्त, अस्तु! रूद्र +अक्ष मिलकर रूद्राक्ष बना है । यह मटर से लेकर बेर तक के आकार का दाना होता है । यह चार रंगों में होता है- श्वेत, लाल, मिश्रित रंग और काला ।
रूद्राक्ष भगवान शिव का प्रिय आभूषण, दीर्घायु प्रदान करने वाला तथा अकाल मृत्यु को दूर धकेलने वाला है । भौतिक और साधनात्मक कई दृष्टियों से प्रकृति की यह अद्भूत भेंट है ।
रूद्राक्ष एक अद्भुत वस्तु है । विश्व में केवल नेपाल, जावा, सुमात्रा, इंडोनेशिया, बर्मा, आसाम और हिमाचल के कई क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाला रूद्राक्ष एक सुपरिचित बीज है जिसे पिरोकर मालाएं बनाई जाती है, लेकिन आज तक कई लोगों को इस अद्भूत ताँत्रिक वस्तु के गुणों की जानकारी नहीं है । लोगों की धारणा है कि रूद्राक्ष पवित्र होता है, इसलिए इसे पहनना चाहिए । बस, इससे अधिक जानने की चेष्टा किसी ने नहीं की ।
रूद्राक्ष का दाना अथवा माला जो भी सुलभ हो, गंगाजल या अन्य पवित्र जल से स्नान कराकर, शिवजी की भाँति चन्दन, अक्षत, धूप-दीप से पूजना चाहिए । पूजनोपरांत ॐ नमः शिवायʼ मंत्र का 1100 जप करके 108 बार हवन करना चाहिए । तत्पश्चात् रूद्राक्ष को शिवलिंग से स्पर्श कराकर पुनः 5 बार
ॐ नमः शिवायʼ मंत्र जप करते हुए पूर्व या उत्तर की ओर मुँह करके धारण कर लेना चाहिए ।
धारण करने के बाद हवन-कुण्ड की भस्म का तिलक लगाकर शिव को ध्यान कर प्रणाम करना चाहिए । इस विधि से धारण किया गया रूद्राक्ष त्वरित और निश्चित प्रभावी होता है । यह रूद्राक्ष धारण करने की सरलतम पद्धति है । वैसे समर्थ साधकों को चाहिए कि वे (यदि संभव हो तो) अपने रूद्राक्ष को पंचामृत से स्नान कराकर, अष्टगंध अथवा पंचगंध से भी नहलाये, फिर पूर्ववत् पूजा करके उस रूद्राक्ष से संबंधित मंत्र विशेष का (धारियों के आधार पर) 1100 जप करें और 108 बार आहुति देकर हवन करें, तदोपरान्त उसी मंत्र को 5 बार जपते हुए रूद्राक्ष धारण करें और भस्म लेपन के पश्चात् शिव को ध्यान कर प्रणाम करें ।