राजा दाहिर कौन थे? हमें उनके बारे में इतिहास में क्यों नहीं बताया जाता? जानिए

हमारी इतिहास की किताबों में 8 वी शताब्दी को मिटा सा दिया गया है ये वो समय था जब भारत की सीमा पर अरब आक्रमण हुआ था। अब इसे किताबों में ना रखने की वजह क्या थी वो तो इस बात से समझी जा सकती है कि लोगों को अकबर महान लगता है और महाराणा प्रताप पर लोग विवाद करते हैं ।

कांग्रेस आती है तो हल्दीघाटी में प्रताप को हरा देती है और बीजेपी फिर उस पर आकर विवाद करके अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक लेती है लेकिन असल इतिहास की बात करने में दोनों को ही जोर आता है ।

राजा दाहिर भी भारत के उन भूला दिए गए एतिहासिक नामों में शामिल है । भारतीय सीमा राज्य सिंध के आखिरी हिंदू शासक थे राजा दाहिर

और राजा दाहिर की गलती थी कि उसने मुस्लिमों के पैगम्बर मोहम्मद के पोते इमाम हुसैन की अरब उम्माओ ( खलीफा) से रक्षा के लिए शरण दी थी । शरणागत की रक्षा का उच्च सिद्धांत भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहा है।

राजा दाहिर और उसका बेटे ने युद्ध लड़ते हुए वीरों की भांति बलिदान दिया । राजा दाहिर को जब दूसरे हिंदू राज्य से शरण और अपने परिवार को दूर भेजने की सलाह दी तो उसने उसे नकार दिया ये कहते हुए कि उसके लोग यहां हैं और उसकी बेटियों का इतिहास चचनामा से मिलता है उनके बदले का इतिहास ।

हालांकि जब कासिम सिंध से आगे बढ़ा तो लतितादित्य , नागभट और बप्पा रावल उसकी सेनाओं को दूर खदेड़ने में सफल रहे लेकिन अब वो सीमा की दीवार टूट चुकी थी जो राजा दाहिर के रुप में थी

वो एक बहादुर राजा था लेकिन उसका जिक्र न के बराबर है । हमें लोदी, मुगल , तुगलक , खिलजी याद है उनके मकबरे हैं उनके नाम पर रोड हैं लेकिन राजा दाहिर जैसे वीरों को भूला दिया गया । हमारे पहले शिक्षा मंत्री ही इसका कोई जवाब दे सकते थे । शायद वो अरब खलीफा को नाराज़ नहीं करना चाहते होंगे

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