राजा त्रिशंकु कौन थे और ऋषियों ने उनको अंतरिक्ष में क्यों छोड़ दिया था? जानिए वजह

वाल्मीकि रामायण के बालकांड में ‘त्रिशंकु स्वर्ग’ का जिक्र किया गया है, जिसका संबंध एक जीवित व्यक्ति के मरने से पहले ही स्वर्ग जाने की चाह से जुड़ा है। यह तो हम जानते ही हैं कि मरने के बाद आत्मा स्वर्ग के दर्शन कर सकती है, कोई भी जीवित इंसान कभी स्वर्ग नहीं जा सकता।

लेकिन त्रिशंकु एक ऐसा स्वर्ग है जहां एक इंसान ने शरीर के साथ जाने की कोशिश की और उस कोशिश के नतीजे के रूप में वह स्वर्ग और धरती के बीच उलझकर रह गया।

सूर्यवंशी सत्यव्रत एक बेहद दयालु और अपनी प्रजा का हित चाहने वाला राजा था, जिसने अपने शासनकाल के दौरान कई धार्मिक कार्य किए और अपने आराध्य को प्रसन्न करने की हर संभव कोशिश की।

उम्र के सही पड़ाव पर आकर सत्यव्रत ने राजगद्दी अपने पुत्र हरिश्चंद्र को सौंप दी और स्वयं मानव शरीर के साथ स्वर्ग में पहुंचने की कोशिश में लग गया। अपनी इस कोशिश को पूरा करने के लिए वह अपने गुरु वशिष्ठ के पास पहुंचा और उन्हें एक ऐसा यज्ञ करने की बात कही जिसके बाद वह नश्वर शरीर के साथ स्वर्ग की दहलीज पार कर जाए।

गुरु वशिष्ठ, सत्यव्रत की बात से बेहद क्रोधित हो उठे और उसे कहा कि वह ऐसा विचार भी अपने मन से निकाल दे क्योंकि यह उसके लिए बेहद घातक साबित हो सकता है। गुरु वशिष्ठ के इस यज्ञ को मना करने की बात सुनकर वह उनके पुत्रों के पास गया और सारा हाल बताया।

इस घटना के बाद भी सत्यव्रत ने स्वर्ग जाने का अपना विचार नहीं बदला और अपने यज्ञ करवाने की इच्छा को पूरी करने के लिए गुरु वशिष्ठ के प्रतिद्वंदी माने जाने वाले महर्षि विश्वामित्र के पास गया।

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