यरूशलम इस्लाम, ईसाई और यहूदी तीनों के लिए इतना अहम क्यों है?

दरअसल ये तीनो एक ही धर्म को मानने वाले हैं। ईसा यानि जीसस के आने से पहले यहूदी और ईसाई दोनों ही मुस्लिम थे। फिर ईसा के आने के बाद कुछ लोगों ने उन्हें ईश्वर का दूत मानने से मना कर दिया और तब 2 गिरोह बन गए। ईसा को मानने वाले ईसाई और जो बाकी बचे वो यहूदी। फिर उसके बाद आखरी दूत मोहम्मद आये और फिर वही हुआ की कुछ लोगों ने उन्हें ईश्वर का दूत मानने से मना कर दिया तो फिर तीन गिरोह बन गए।

ईसा को मानने वाले ईसाई, मूसा को मानने वाले यहूदी और मोहम्मद को मैंने वाले मोहम्मदी या मोहम्मडन।(मोहम्मद को दूत मानने वाले ईसा और मूसा को भी वैसे ही ईश्वर का दूत मानते हैं। और ईसा को दूत मानने वाले मूसा को वैसे ही ईश्वर का दूत मानते हैं। और इब्राहिम को तो तीनो ही मानते हैं)

जिस तरह सभी मुसलमान काबा यानी मक्का की तरफ रुख कर के नमाज़ पढ़ते हैं उसी तरह मक्का को केंद्र बनाने से पहले इन सबका केंद्र यरूशलम ही था। और तीनो उसी की तरफ रुख कर के नमाज़ पढ़ते थे। परन्तु जब उन्होंने मोहम्मद को ईश्वर का पैगम्बर मानने से इनकार कर दिया तो उसके बाद उस केंद्र को ईश्वर ने यरूशलम से बदल कर मक्का कर दिया जिसका विस्तृत वर्णन क़ुरआन में दिया गया है।

इसलिए इन तीनो के लिए ही वो बहोत अहम् है।

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