यदि सचिन तेंदुलकर और विराट कोहली एक ही युग में होते तो कौन ज्यादा सफल होता?

क्रिकेट या किसी खेल में तुलना हमेशा होती रहती है । चाहे वह फुटबॉल में मेसी और रोनाल्डो की हो या टेनिस में फेडरर और नडाल की । कभी-कभार यह तुलना समकालीन खिलाड़ियों की होती है तो कभी नए खिलाड़ियों की पुराने महान खिलाड़ियों से ।

विराट कोहली वर्तमान समय में सबसे बेहतर खिलाड़ी हैं तो दूसरी तरफ तेंदुलकर किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं । उन्हें तो क्रिकेट का भगवान ही कहा जाता है । दोनों खिलाड़ियों में काफी समानताएं हैं ।

दोनों ने अपना अंतरराष्ट्रीय करियर काफी कम उम्र में शुरू किया था । सचिन ने 16 वर्ष तो कोहली ने 18 वर्ष की अल्प आयु में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डेब्यू कर लिया था ।
दोनों ही शुरुआती दौर में मध्यक्रम के बल्लेबाज थे जो बाद में टाॅप ऑर्डर में खेलने लगे ।
दोनों के पिता की मैच के दौरान मृत्यु हुई । एक तरफ जहाँ कोहली रणजी ट्राफी खेल रहे थे तो सचिन 1999 का विश्व कप । कोहली ने अपने पिता के दाह संस्कार के बाद 90 रन बनाकर दिल्ली के लिए मैच बचाया तो सचिन ने केन्या के खिलाफ शतक लगाया ।
सचिन अपने समकालीन खिलाड़ियों से काफी आगे थे तो ऐसा ही कुछ कोहली के साथ है ।
यह श्रृंखला लंबी जा सकती है ।

बल्लेबाजी:

अब तुलनात्मक दृष्टि से देखते हैं । हम बड़े भाग्यशाली हैं जिन्होंने इन दोनों खिलाड़ियों को साथ खेलते हुए देखा । जब कोहली अपने करियर में लगातार सफलता की सीढ़ियां चढ़ रहे थे तो सचिन अपने करियर के ढलान पर थे । एकदिवसीय मैचों में पाकिस्तान के खिलाफ एशिया कप 2012 का मैच उनका आखिरी मैच साबित हुआ । इस मैच में दोनों ने ही कमाल की बल्लेबाजी की । सचिन ने जहाँ 48 गेंदों पर 52 रन बनाए वहीं कोहली ने तो अपने अब तक के करियर की सर्वश्रेष्ठ पारी खेली । उन्होंने 183 रन बनाए और भारत को जीतने में मदद किया । इस एशिया कप में सचिन ने एक शतक लगाया(जो उनका 100वां शतक था) और कोहली ने दो शतक लगाए ।

सचिन शुरुआत से ही प्रतिभाशाली खिलाड़ी थे पर कोहली ने कड़ी मेहनत से खुद को महान खिलाड़ी बनाया है । उन्होंने अपने खान पान से लेकर पूरी जीवन शैली बदल डाली जिसका असर उनके खेल पर दिखाई देता है ।

अब खेल की बात करें तो नियमों में काफी बदलाव आया है। क्षेत्ररक्षण के नियम, गेंदबाजों के लिए पाबंदियां, सीमारेखाओं का छोटा होना, अत्यधिक टी20 प्रारूप इत्यादि सचिन के जमाने में नहीं थे । उस दौरान गेंदबाज 150 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से आमतौर पर गेंदबाजी करते थे । आज के जमाने में यदि कोई गेंदबाज 150 की गति की गेंद कर देता है तो सुर्खियां बन जाती हैं ।

बल्ले की बनावट और गुणवत्ता में भी काफी सुधार आया है। आजकल के बल्ले काफी मोटे और ताकतवर होते हैं । अगर हम आंद्रे रसेल जैसे बल्लेबाजों को देखें तो बल्ले के बीच गेंद ना लगने पर भी गेंद सीमारेखा के बाहर जाती है ।

अगर विवियन रिचर्ड्स के पास आजकल के बल्ले होते तो उनका वह शाॅट 6 रनों के लिए जाता या फिर कपिलदेव से काफी दूर रहता । कपिल वह कैच ले नहीं पाते और रन काफी कम होने की वजह से भारत कभी वह मैच जीत नहीं पाता । विश्व कप 1983 भी वेस्टइंडीज का होता और आज भारतीय क्रिकेट की यह शक्ल नहीं होती ।

गेंदबाजी:

सचिन में एक और खूबी थी- उनकी गेंदबाजी । अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में उनके नाम 200 विकेट हैं । अहम मौकों पर बड़े खिलाड़ियों को आउट करने की कला उन्हें एक मैच विनर बनाती थी । 2001 का चेन्नई टेस्ट कौन भूल सकता है ?

कोहली की गेंदबाजी बिल्कुल अच्छी नहीं है और ऐसा वह खुद भी मान चुके हैं । इस क्षेत्र में सचिन आगे निकल गए ।

क्षेत्ररक्षण:

क्षेत्ररक्षण की बात करें तो विराट कोहली निश्चित ही ज्यादा बेहतर कहे जा सकते हैं ।

पर हम यह नकार नहीं सकते कि सचिन भी अच्छे क्षेत्ररक्षक थे ।

2011 विश्व में वह सीमारेखा पर क्षेत्ररक्षण कर रहे थे और उस समय उनकी उम्र 38 वर्ष थी ।

कप्तानी :

एक क्षेत्र जहाँ कोहली काफी आगे निकल गए हैं वह है कप्तानी । जी हाँ, सचिन जितने ही अच्छे क्रिकेटर थे उतने ही असफल कप्तान । दूसरी शब्दों में उनका दुर्भाग्य भी कहा जा सकता है कि उन्हीं के समय मैच फिक्सिंग स्कैंडल हो गया और उन्होंने कप्तानी छोड़ दी । वहीं कोहली भारतीय टेस्ट टीम को 7वें से पहले पायदान पर ले गए और इस दौरान उनकी बल्लेबाजी निखरती गई ।

संक्षेप में अगर बताया जाए तो सारे क्षेत्र देखते हुए सचिन ज्यादा सफल होते पर कोहली कड़ी मेहनत से आगे निकलने की कोशिश जरूर करते । विराट भी सचिन के बहुत बड़े प्रशंसक हैं और उन्हें अपना आदर्श मानते हैं ।

सबसे अच्छी बात यह है कि यह दोनों खिलाड़ी भारत से हैं और एक दूसरे का काफी सम्मान करते हैं ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *