यदि ईश्वर है तो वह मासूमों प्रताड़ितों की क्यों नहीं सुनता? जानिए सच
इस जगत में ईश्वर का वास चारों दिशाओं में और कण-कण में है। ईश्वर तो हर मासूमों की सुनता है पर क्या मासूम लोग ईश्वर की सुनता है। जब ईश्वर ने खुद ये कहा है कि कर्म करो परिश्रम करो आपको फिर कोई भी तंग नहीं कर सकता। परंतु लोग हैं कि हमेशा सुख में डुब कर सब कुछ भूल जाते है और परिश्रम करना छोड देते है जिसकी वजह से भविष्य में उन्हें मुसीबतों का सामना करना पड़ता है।
जिस हम मासूम समझते है। हकीकत में वो कामचोर और लालची होते है। जिन्हें मौका मिलते ही वो अपना असली रंग दिखा देते है। उदाहरण के तौर पर मान लो एक गरीब व्यक्ति जो रोड पर भीख मांगता है पूरे दिन वो भीख मांग कर कम से कम 150 या 200 रूपये तो आराम से कमा लेता है।
शायद इससे भी ज्यादा लेकिन वो इन पैसों का क्या करता हैं। वो चाहे तो रोज के 60–70 रूपये जोड सकता है। और बाकी के पैसों अपना खाना पिना आराम से कर सकता है। लेकिन वो इन पैसों से ठेके पर जाकर शराब खरीदेगा और साथ में एक प्लेट अंडे छिल वायेगा। और पैसे खत्म कर देगा।
अब जो व्यक्ति ऐसे लोगों को मासूम समझता है तो ये आपकी गलती नहीं क्योंकि इनकी सच्चाई आपको पता नहीं होती। मासूम तो बच्चे होते है जिन्हें दुनिया की कोई खबर ही नहीं मासूम तो वो रोड पे दिखाई देने वाले कुत्ते है जिन्हें एक पांच वाला बिस्कुट खिला दो तो वो आपका पीछा तक मुशिकल से छोडते है। हां अगर आपको फिर भी ज्यादा दया आती है तो आप मदद कर सकते है। शायद हकीकत में उसे आपको की जरूरत हो पर थोड़ा सोच समझकर फैसला ले।