मृत्यु के पश्चात श्राद्ध आदि क्रियाओं को पुत्र ही क्यों करते हैं?

इसके कई कारण हैं। एक तो यह कि परिवार की परम्परा चलाने की अपेक्षा पुत्र से ही की जाती है। पुत्रियों से उनके पतिकुल की परम्परा चलाने की अपेक्षा की जाती है अतः उन पर श्राद्धकर्म का दायित्व नहीं डाला जाता। तभी भी जहाँ पुत्र या कुल के और लोग न उपलब्ध हों वहाँ पुत्रियाँ भी श्राद्ध कर सकती हैं।

दूसरा यह कारण है कि शोक के समय स्त्रियों की मानसिक दशा अधिक ही खराब हो जाती है और इस दौरान उनको सँभालना कठिन हो जाता है। जैसा कि मृत्यु के अवसरों पर सभी ने देखा होगा घर परिवार के लोगों की प्रमुख चिन्ता यह रहती है कि घर की स्त्रियों को विशेष रूप से मृतक की पत्नी, पुत्री या माँ को कैसे सँभाला जाय। इस स्थिति को देखते हुए व्यवहारिकता का ध्यान करके भी पुत्रियों को श्राद्ध का अधिकार नहीं दिया गया है।

तीसरी बात यह कि श्राद्ध का कर्म कठोर है और स्त्रियों की प्रकृति के अनुकूल नहीं पड़ता। श्मशान में जाकर लाशों के बीच में खड़ा होना, शव को मुखाग्नि देकर उसे जलते देखना, सिर मुड़वाना, तेरही के दौरान घर के बाहर रहकर अपना भोजन अलग से पकाकर खाना आदि ऐसी बाते हैं जो स्त्रियों के लिए कष्टकर है। (यह अलग बात है कि आधुनिक समय में पुराने समय की बहुत सी धर्मशास्त्र विहित विधियों का पालन नहीं होता।) समूची प्रक्रिया ही बहुत थकाने और क्लान्त करनेवाली है। इस कारण भी पुत्रियों को श्राद्धकर्म का अधिकार नहीं दिया गया है।

अन्तिम बात यह कि श्राद्ध के सम्बन्ध में बहुत से नियमों का पालन करने में पुत्रियों के लिए व्यवहारिक कठिनाई है। उदाहरण के लिए एक नियम यह भी है कि श्राद्ध करनेवाले को एक वर्ष तक घर के बाहर का कुछ भी नहीं खाना होता। विवाहित पुत्री इस नियम का पालन या तो एक वर्ष तक मायके में रहकर कर सकती है या ससुराल में अपने भोजन बनाने की अलग व्यवस्था करके। (यहाँ घर का अर्थ मृतक के घर परिवार से है। कितनी भी खींचतान करके हम किसी पुत्री के जेठ व देवर के परिवारों को इस घर परिवार में नहीं ला सकते। पुराने समय में लोग संयुक्त परिवार में ही रहते थे।) दोनों ही परिस्थितियों में उसके यह नियम निभाने की क्षमता उसके ससुरालवालों की स्वीकृति पर निर्भर करती है।

इन बातों के कारण ही पुत्र ही मृत्यु के बाद श्राद्ध करने के प्रथम अधिकारी माने गये हैं और अभी तक मुख्य रूप से वे ही यह करते आये हैं। इस विषय में लोगों के धार्मिक विश्वासों से प्रभावित रहने के कारण मुझे भविष्य में भी यही स्थिति बनी रहने की सम्भावना प्रतीत होती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *