महाराज बाली का जन्म कैसे हुआ? महाराज बाली क्यों प्रसिद्ध हुए?
ऋक्षराज नाम के एक वानर के बारे में बताया था यह वानर बहुत ही शक्तिशाली और बलवान था.उस वानर को अपने बल पर बहुत घमंड था और वह इस घमंड में निर्भय होकर इधर उधर विचरण करता रहता था. ऋष्यमूक पर्वत के नजदीक ही एक बड़ा ही सुंदर तालाब था. और उस तालाब की एक विशेषता थी जो अद्भुत थी वो विशेषता यह है की उस तालाब में जो भी स्नान करता, बाहर निकलने पर वह एक अत्यंत सुंदर स्त्री बन जाता. पर इस बात की जानकारी ऋक्षराज को नहीं थी. वह अपनी मस्ती में एक दिन वह उस तालाब में नहाने के लिए कूद पड़ा और जैसे ही नहा कर बाहर आया तो उसने देखा कि वह एक बहुत ही सुंदर सोलह वर्ष की स्त्री के रूप में परिणित हो चुका है.
अपने आप को स्त्री रूप में देखकर उसे बहुत शर्म महसूस हुई. परंतु वह कुछ नही कर सकता था. कुछ देर ही देवराज इन्द्र वहा से गुजर रहे थे तो उनकी दृष्टि उस स्त्री पर पड़ी. स्त्री को देखते ही उनका तेज स्खलित हो गया. इन्द्र का तेज उस स्त्री के बालों पर गिर गया.
उसके कारण एक बालक की उत्पत्ति हुई जो बाली कहा गया. कुछ देर बाद जब सूर्योदय हुआ तो सूर्य की दृष्टि भी उस सुन्दरी पर पड़ी. और सूर्यदेव भी उस स्त्री की सुन्दरता पर मोहित हो उठे. जिसके कारण उनका तेज भी स्खलित हो गया, जो स्त्री की ग्रीवा पर पड़ा. उससे भी एक बालक का जन्म हुआ जिसका नाम सुग्रीव पड़ा.
इस तरह बाली और सुग्रीव दोनों ही सगे भाई थे. इन दोनों में बाली बड़ा था जो इन्दा का पुत्र था और छोटा सूर्य का पुत्र सुग्रीव था. इन दोनों के नाम बालों पर तेज गिरने से बालि और ग्रीवा पर तेज गिरने से सुग्रीवपड़े थे. उन दोनों का पालन पोषण उसी स्त्री ने किया जो ऋक्षराज वानर से स्त्री में परिणित हुई थी. उसी ऋष्यमूक पर्वत को अपना निवास बनाया. और फिर उनके साथ वही निवास करने लगी।
बाली ने घोर तपस्या कर भगवान ब्रम्हा हा को प्रश्न कर अजर अमर का वरदान मांगा। ब्रम्हा जी ने उसे ये आशीर्वाद दिया की जिससे भी तुम युद्ध करोगे उसका आधा बल तुम्हारे शरीर में प्रवेश हो जाएगा।