महाभारत में योजनगंधा के नाम से किसे जाना जाता है? जानिए उनके बारे में

एक बार महर्षि पराशर मत्स्यगंधा की नाव पर यात्रा कर रहे थे तभी बहुत तीव्र वर्षा होने लगी। वर्षा मे नाव चलाना कठिन हो गया तो मत्स्यगंधा ने नाव को पास के एक द्वीप पर रोक दी और वहीं दोनों लोग विश्राम करने लगे।

मत्स्यगंधा वर्षा जल से पूरी तरह भीग चुकी थी और महर्षि पराशर भी भीग चुके थे। इस ऋतु के कारण महर्षि पराशर की कामोत्तेजना आसक्त हो गयी। अतः उनहोने मत्स्यग्न्धा से सहवास करने का अनुरोध किया।

ऋषि के अनुरोध पर मत्स्यगंधा भयभीत हुई और उनसे कहा, “महर्षि, आप मेरे साथ सहवास कैसे कर सकते हैं? मेरे तो पूरे तन से मत्स्य की दुर्गंध आती है। मैं आपकी सहवासिनी की पात्र नहीं हूँ। ”

तब महर्षि ने कहा, ” ठीक है, मैं तुम्हारे तन की दुर्गंध को सुगंध मे बदल देता हूँ।” इस प्रकार महर्षि ने अपने तपोबल से दुर्गंध समाप्त करके सुगंध मे बदल दिया। अब मत्स्यगंधा के तन से दुर्गन्ध के स्थान पर मोहक सुगंध आने लगी जो कई योजनों की दूरी से भी ज्ञात हो जाती थी। इसलिए अब उनका नाम योजनगंधा पड़ गया।

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