भारत में सिंदूर पहनने की प्रथा कैसे शुरू हुई ?
हिन्दू धर्म में शादीशुदा महिलाओं के लिए सिंदूर का काफी अधिक महत्व है। इसे सुहाग की निशानी कहा जाता है और हर शादीशुदा स्त्री को अपने मांग में सिंदूर भरना होता है। सोलह श्रृंगार में भी सबसे अधिक महत्व सिंदूर का ही होता है। भारत मे सिंदूर पहनने की प्रथा के शुरुवात की पीछे मुख्य तौर पर दो कहानिया या किवदंतिया प्रसिद्ध हैं –
एक पौराणिक कहानी के अनुसार सीता माता अपनी मांग में लंबा सिंदूर लगाया करती थी। एक बार हनुमानजी ने माता सीता से पूछा आप सिंदूर क्यों लगाती हैं तो माता ने बताया इससे भगवान राम को प्रसन्नता मिलती है। जब उनसे सिंदूर लगाने का महत्व पूछा गया तो उन्होंने कहा कि सिंदूर लगा देखकर मेरे पति खुश हो जाते है। जब व्यक्ति खुश रहता है जो उसकी स्वस्थता बढ़ती है। ऐसे में इसे ही पति की लंबी उम्र का आधार मान लिया गया।
दूसरी एक लोककथा हैं जिसके अनुसार भगवान ने बड़ी लगन से दो सूरतों में प्राण फूंके थे । एक था भील, नाम था वीरा। वीर था। एक दूसरी थी, नाम था धीरा। इसमें वीरता और धीरता दोनों थी। जितनी सुंदर थी, उतनी ही बहादुर। दोनों का विवाह हुआ। दोनों ने साथ-साथ जीना शुरू किया। दोनों भील थे, शिकार पर जाते थे। ज़िंदगी जंगलों में घूमते-छानते बीतती थी। वीरा के साथ हमेशा धीरा होती थी। पूरे जंगल में इस जोड़ी की खुशबू फैल गई थी। दोनों से दुनिया सुंदर लगने लगी थी। जैसे दो का प्यार दुनिया को सुंदर बनाता है। एक बार दोनों शिकार पर निकले लेकिन पूरा दिन उन्हें कुछ नहीं मिला। थक हार कर इन्होने कंद मूल खा कर ही गुजारा करने का फैसला किया। उसके बाद ये दोनों पहाड़ पर ही सो गए। प्यास लगने पर वीरा पास के जलाशय से पानी लेने गया और धीरा वहीं बैठ कर उसका इंतजार करने लगी।
उस समय रास्ते में वीरा पर कालिया ने हमला कर दिया। वह घायल हो गया और जमीन पर गिर पड़ा, उसके गिरने पर कालिया डाकू काफी खुश हुआ। हंसी की आवाज सुन कर धीरा वहां पहुंचीं और अपने पति को इस हालत में देख कर उसने चुपके से कालिया पर हमला कर दिया। इतने में वीरा को भी होश आ गया था। पत्नी की इस वीरता को देख कर उसने खून से अपनी पत्नी की मांग भर दी। किवदंती है कि इसी समय से मांग भरने की प्रथा शुरु हुई जो आज तक जारी है। धीरा ने बड़ी वीरता से अपने पति की जान बचाई और इसी प्रथा को पूरा करते हुए आज भी महिलाएं मांग में सिंदूर लगाती है और अपने पति की रक्षा के लिए कुछ भी कर सकती है।
वैसे अपने हिन्दू धर्म की ज्यादातर मान्यताओं की तरह इस मान्यता के पीछे भी कई वैज्ञानिक कारण हैं जैसे –
सिंदूर में पारा धातु होता है। जो ब्रह्मरंध ग्रंथि के लिए अच्छा होता है। इसे लगाने से तनाव कम होता है और एकाग्रता को बढ़ाता है।
यह धातु ब्लड प्रेशर को भी नियंत्रित रखने में मदद करता है। मन को शीतलता का अनुभव कराता है।
सिंदूर रक्त संचार को बढ़ाने में भी मदद करता है।
हालांकि सिंदूर लगाने का प्रचलन सबसे ज्यादा उत्तर भारत में ही चलता है। देश के बाकी हिस्सों में यह प्रथा नहीं है।