भारतीय रेलवे स्टेशनों पर पत्र-पत्रिका आदि बेचने वाले बुक स्टॉल चेन ए.एच. व्हीलर का क्या इतिहास है?

1857 की क्रान्ति के दौर में कानपुर में एक अंग्रेज अधिकारी हुआ करता था जिसका नाम था आर्थर हेनरी व्हीलर यानी एएच व्हीलर। 1857 में बिठुर में भी भीषण क्रान्ति हुई। जिसमें नाना साहब, तात्या टोपे आदि की क्रांति को अंग्रेजों ने बलपूर्वक कुचल दिया।

एएच व्हीलर के नेतृत्व में ही इस विद्रोह को कुचला गया। इस विद्रोह में करीब 24 हजार लोग मारे गए थे। इसी आर्थर हेनरी व्हीलर ने अंग्रेज सेना से रिटायर होने के बाद इंग्लैण्ड में अपनी बुक स्टोर्स की श्रृंखला खोली। इसका नाम उसने रखा ए.एच. व्हीलर बुकस्टोर्स यानी आर्थ हेनरी व्हीलर बुक स्टोर।

व्हीलर के दामाद मार्टिन ब्रांड और एएच व्हीलर के को-फाउंडर और फ्रांसीसी लेखक एमिली एडवर्ड और मोरे ने टी.के.बनर्जी के साथ मिलकर भारतीय रेलवे स्टेशनों पर एएच व्हीलर के नाम से बुक स्टोर्स खोले। भारत में एएच व्हीलर का पहला स्टॉल 1877 में इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर खुला था। चूंकि तब मार्टिन ब्रांड का एक रिश्तेदार तब अंग्रेजों की रेलवे में बड़ा कॉमर्शियल अधिकारी था।

इसलिए पूरे भारत के रेलवे स्टेशनों पर ए.एच. व्हीलर बुक स्टोर्स खोलने का करार हुआ। कंपनी का दूसरा स्टोर हावड़ा रेलवे स्टेशन और तीसरा नागपुर स्टेशन पर खोला गया। धीरे-धीरे कंपनी का नेटवर्क बढ़ता गया। 1930 में टीके बनर्जी 100 प्रतिशत शेयर लेकर कंपनी के मालिक हो गए। टीके बनर्जी के परपोते और वर्तमान में कंपनी के निदेशक अमित बनर्जी हैं। आज एएच व्हीलर एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड में 10 हजार से अधिक लोग नौकरी करते हैं.

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