भगवान श्री कृष्ण ही नहीं, राम से भी है मथुरा की पहचान, जानिए कैसे

मथुरा को श्री कृष्ण की नगरी कहा जाता है लेकिन क्या आपको मालूम है कि भगवान श्री कृष्ण के अवतरण से पहले मथुरा नगरी की पहचान क्या थी? आपको यह जानकर बहुत आश्चर्य होगा कि कृष्ण से पहले मथुरा की पहचान भगवान राम थे। दरअसल, हुआ कुछ यूं कि जब भगवान राम रावण का वध करके अयोध्या लौटे तो कुछ समय पश्चात उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया जिसका घोड़ा उनके दोनों जुड़वां बेटे लव और कुश ने रोका था। उनके बेटों द्वारा यज्ञ के घोड़ों को रोकने की कहानी को सब जानते हैं। लेकिन, उस यज्ञ के बाद भगवान राम ने अपने तीनों भाईयों को दूसरे अपराजित राजाओं से युद्ध करने के लिए भेजा और अपने साम्राज्य का संवर्धन किया।

वाल्मीकि रामायण में मथुरा को मधुपुर या मधुदानव का नगर कहा गया है तथा यहां लवणासुर की राजधानी बताई गई है। इस नगरी को इस प्रसंग में मधु दैत्य द्वारा बसाया हुआ बताया गया है। लवणासुर मधुदानव का पुत्र था। लवणासुर को राम के सबसे छोटे भाई शत्रुघ्न ने युद्ध में हराकर मारा था। इसके बाद यहां वर्षों तक भगवान राम की विजय पताका लहराती रही। वाल्मीकि रामायण की एक अन्य कथा के अनुसार, सीता हरण के बाद वानर राज सुग्रीव ने वानरों को उनकी खोज में उत्तर दिशा की ओर भी भेजा था।

वानर दल को भेजने से पहले उन्होंने शतबलि और दूसरे वानरों से कहा कि उत्तर दिशा में म्लेच्छ पुलिन्द, शूरसेन, प्रस्थल, इन्द्रप्रस्थ और हस्तिनापुर के आसपास के प्रान्त भरत, कुरु, मद्र, कम्बोज, यवन व शकों के देशों एवं नगरों में भली-भांति अनुसन्धान करके दरद देश में और फिर हिमालय पर्वत पर सीता माता को ढूंढो।

इन इलाकों में जिसे शूरसेन जनपद कहा गया है, उसे मथुरा का ही एक आदि नाम माना जाता है। हालांकि, इस नामकरण के संबंध में अनेक मत हैं, किन्तु कोई भी सर्वमान्य नहीं है। लेकिन यहां एक ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि शत्रुघ्न के पुत्र का नाम शूरसेन था। लेकिन यह स्पष्ट है कि शत्रुघ्न के पुत्र से पहले ही ‘शूरसेन’ जनपद नाम अस्तित्व में था, जो संभवत: आज मथुरा के रूप हमारे सामने आता है।

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