बीहड़ में खामोश खडे है ये खूनी दरवाजे, जानें रहस्य
महाभारत तो आपने देखा ही होगा, उसमें में देवगिरि पहाड़ी का उल्लेख मिलता है। इस पहाड़ी पर एक दुर्ग बना है, जिसमें एक खूनी दरवाजा था। खुबसूरत ईस जगह पर खूनी दरवाजे क्यों थे? आज हम आपको इसके रहस्य के बारे में बताएंगे। इस दरवाजे से सिर्फ जासूसों को किले के अंदर प्रवेश करने की अनुमति थी। राजा के जासूस और गुप्तचर जो प्रजा के बीच और आस-पास के क्षेत्रों में फैले होते थे, जब उन्हें राजा को कोई गुप्त सूचना देनी होती थी, तब वह इस द्वार से होते हुए राजा से मिलने जाते थे और दुश्मनों से जुड़ी गुप्त सूचनाएं राजा को देते थे।
सालों पूराना है ये किला
आटेर का यह किला महाभारत काल के बाद बनाया गया है। पुरातत्व वैज्ञानिक इस दुर्ग को करीब 350 साल पुराना बताते हैं। चंबल के बीहड़ के बीच बने इस किले ने सदियों से इतिहास को खुद में समेट रखा है। बीहड़ के बीच खड़ा यह किला अपने आलीशान अतीत की चीख-चीखकर गवाही देता है। खूनी दरवाजे पर लाल रंग की पुताई कराई गई थी। इस दरवाजे के एक कोने में किसी जानवर का कटा हुआ सिर टांग दिया जाता था, जिससे खून टपकता रहता था। इसके नीचे एक कटोरा रख दिया जाता था। राजा से मिलने के लिए गुप्तचर इस खून से तिलक लगाकर ही दुर्ग में प्रवेशकरते थे।
खजाने की लालच में दुर्ग के कक्षों को खोद डाला
चंबल नदी के किनारे बसे इस दुर्ग में खजाना गढ़ा होने की सोच के चलते स्थानीय लोगों ने इस दुर्ग की तलहटी में बने कक्षों को खोद डाला। किसी को कुछ मिला या नहीं, इसकी सटीक जानकारी तो नहीं मिली लेकिन खुदाई के बाद देखभाल न होने के कारण यह किला जर्जर हालत में जख्म लिए खड़ा है। भिंड क्षेत्र को पहले ‘बधवार’ कहा जाता था। अटेर का किला भिंड जिले से करीव 35 किलो मीटर दूर चंबल नदी के किनारे पर स्थित है। इस किले का निर्माण 1664 ईस्वी में भदौरिया राजा बदन सिंह ने कराया था।