बिना सिगरेट पिये कैसे हो रहा हैं लोगो को फेफड़े का कैंसर
लंग कैंसर में फेफड़ों में गांठ बन जाती है जो फेफड़ों के आसपास के टिश्यू को डिस्ट्रॉय करने लगती है, उसमें से छोटे-छोटे सेल्स टूटकर पूरे शरीर में फैलते हैं. कभी ब्रेन, कभी लिवर या कभी बोन्स में इस तरह की गांठ को लंग कैंसर कहते हैं.
फेफड़े/लंग का कैंसर क्यों होता हैं (कारण)
लंग कैंसर की सबसे बड़ी वजह है स्मोकिंग
इसमें एक्टिव और पैसिव दोनों तरह की स्मोकिंग शामिल है
जो स्मोक कर रहा है वो तो रिस्क पर है ही. उसके आसपास वाले भी रिस्क पर है
पैसिव स्मोकिंग ज़्यादा ख़तरनाक है. क्योंकि आजकल सारी सिगरेट में फ़िल्टर होता है. फ़िल्टर से काफ़ी चीज़ें रुक जाती हैं. फेफड़ों तक नहीं जाती हैं. पर जो बगल में बैठा है. उसके अंदर भी धुआं जा रहा है. वो काफ़ी ख़तरनाक है
निकल इंडस्ट्री में काम करने वालों को भी रिस्क होता है. वो रोज़मर्रा की ज़िंदगी में निकल सांस में लेते हैं जो आगे जाकर कैंसर में तब्दील हो सकता है
जेनेटिक कारण भी हो सकते हैं
इसके कुछ लक्षण
खांसी, खांसी में खून भी आ सकता है
छाती में दर्द होता है
बाकी शरीर में बीमारी फैलती है तो उसके लक्षण आ सकते हैं
ब्रेन में फैलती है तो सिरदर्द हो सकता है. दौरा भी पड़ सकता है
हड्डियों तक जाती है तो हड्डियों में दर्द होता है. फ्रैक्चर भी हो सकता है
उपचार/इलाज
लंग कैंसर का इलाज उसके स्टेज पर निर्भर करता है, मतलब इस बात पर कि बीमारी कितनी फैली हुई है
शुरुआती बीमारी होती है पहला या दूसरा स्टेज. इसमें बीमारी लंग्स तक ही सीमित होती है और आगे नहीं फैली हुई होती है ऐसे केस में पहला स्टेप होता है सर्जरी
सर्जरी में कभी एक हिस्सा, या कभी पूरा लंग भी निकालना पड़ता है, साथ ही बीच में जो लिम्फ़ नोड्स होते हैं वो भी निकाले जाते हैं. लिम्फ़ नोड्स को जांच के लिए भेजा जाता है. जांच की रिपोर्ट के बाद तय होता है कि सर्जरी के बाद कीमोथैरेपी या रेडियोथैरेपी की ज़रूरत है या नहीं है
जब बीमारी तीसरे स्टेज तक पहुंच जाती है तो इसमें इलाज के दो भाग होते हैं. पहले पार्ट में हम दवाइयों की मदद से बीमारी को सिकोड़ते हैं. उसके बाद ऑपरेशन किया जाता है
दूसरे भाग में जहां बीमारी और थोड़ी ज़्यादा बढ़ी हुई होती है तो उसमें ऑपरेशन नहीं होता. उसमें सिर्फ़ रेडियोथैरेपी या कीमोथैरेपी से ही उसका पूरा इलाज होता है