बलि देने के पीछे क्या कारण होता है?

हजारों वर्षों से चली आ रही परंपराओं के कारण हिन्दू धर्म की में देवताओं को प्रसन्न करने के लिए बलि का प्रयोग किया जाता है। बलि प्रथा के अंतर्गत बकरा, मुर्गा या भैंसे की बलि दिए जाने का प्रचलन है। हिन्दू धर्म में खासकर मां काली और काल भैरव को बलि चढ़ाई जाती है। उन्हें बलि चढ़ाने के लिए कई तरह के तर्क दिये जाते हैं। सवाल यह उठता है कि क्या बलि प्रथा हिन्दू धर्म का हिस्सा है? यदि वेद और पुराणों की मानें तो नहीं और यदि अन्य धर्मशास्त्रों की मानें तो हां। हालांकि वेद, उपनिषद और गीता ही एकमात्र धर्मशास्त्र है। पुराण या अन्य शास्त्र नहीं। यदि वेद, उपनिषद और गीता इसकी इजाजद नहीं देती |

बलि प्रथा का प्राचलन हिंदुओं के शाक्त और तांत्रिकों के संप्रदाय में ही देखने को मिलता है लेकिन इसका कोई धार्मिक आधार नहीं है। शाक्त या तांत्रिक संप्रदाय अपनी शुरुआत से ऐसे नहीं थे लेकिन लोगों ने अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कई तरह के विश्वास को उक्त संप्रदाय में जोड़ दिया गया।बहुत से समाजों में लड़के के जन्म होने या उसकी मान उतारने के नाम पर बलि दी जाती है तो कुछ समाज में विवाह आदि समारोह में बलि दी जाती है जोकि अनुचित मानी गई है। वेदों में धर्म के नाम पर किसी भी प्रकार की बलि प्रथा कि इजाजत नहीं दी गई है।..यदि आप मांसाहारी है तो आप मांस खास सकते हैं लेकिन धर्म की आड़ में नहीं।

इसीप्रकार इस्लाम धर्म का सबसे पवित्र त्‍यौहार ईद उल अजहा जिसे बकरीद नाम से जाना जाता है। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग बकरे की कुर्बानी देते है।

बकरे की कुर्बानी देने के पीछे एक ऐतिहासिक तथ्य छिपा हुआ हैं जिसमे कुर्बानी की ऐसी दास्तान हैं जिसे सुनकर ही दिल कांप जाता है। हजरत इब्राहिम द्वारा अल्लाह के हुक्म पर अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए तैयार हो गए थे। हजरत इब्राहिम को लगा कि उन्हें सबसे प्रिय तो उनका बेटा है इसलिए उन्होंने अपने बेटे की ही बलि देना स्वीकार किया। इसी कारण हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी। जब अपना काम पूरा करने के बाद पट्टी हटाई तो उन्होंने अपने पुत्र को अपने सामने जिन्‍दा खड़ा हुआ देखा। बेदी पर कटा हुआ जानवर पड़ा हुआ था | तभी से इस मौके पर कुर्बानी देने की प्रथा है।

इस्लाम भी कभी किसी जानवर की बलि को उचित नहीं मानता बकरीद का वास्तविक अर्थ है अपनी किसी प्यारी चीज की कुर्बानी देना (जैसा हजरत इब्राहिम को उन्हें सबसे प्रिय तो उनका बेटा था ) परन्तु लोगों में इसका मतलब ही बदल दिया और अल्लाह को भ्रमित करने के लिये अपनी चहेती वस्तु को कुर्बान करने की जगह किसी बेबस जानवर की बलि देना शुरू कर दिया |

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