बर्बरीक के किस अपराध के कारण श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया?

बर्बरीक पूर्वजन्म में सूर्यवर्चा नामक यक्षराज था एक बार देवताओं की सभा में भार से पीड़ित हुई पृथ्वी गौमाता के रूप में आयी तथा उन सभी से प्रार्थना करने लगी तब ब्रह्मा जी ने विष्णु जी से कहा कि आप पृथ्वी का भार उतारें तथा इस कार्य में सभी देवता आपका अनुसरण करेंगे तब भगवान ने तथास्तु कहकर ब्रह्माजी की प्रार्थना स्विकार की तभी सूर्यवर्चा ने कहा कि आप लोग क्यूं मनुष्य जन्म धारण करते हैं मैं अकेला ही अवतार ग्रहण करके भाररुप सभी दैत्यों का संहार कर दूंगा।

सूर्यवर्चा के ऐसा कहने पर ब्रह्माजी कूपित हो गये तथा उन्होंने कहा कि दूर्मते! पृथ्वी का यह समस्त भार जो सभी देवताओं के लिए भी दु:सह है उसे तू मोहवश अपने ही द्वारा साध्य बतलाता है। मूर्ख! पृथ्वी का भार उतारने के लिए जब युद्ध होगा तब भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा ही तेरे शरीर का नाश होगा। जब सूर्यवर्चा को इस प्रकार का श्राप मिला तब उसने भगवान से प्रार्थना की कि यदि इसी प्रकार मेरे शरीर का नाश होने वाला है तो जन्म से ही मुझे ऐसी बुद्धि दिजिए जो सभी अर्थों को सिद्ध करने वाली हों भगवान ने उसे वह वर दे दिया।

महाभारत के युद्ध के समय जब कौरवों ने यह बता दिया कि वो कितने दिनों में युद्ध को समाप्त कर देंगे तब धर्मराज ने अपने पक्षों से भी यही सवाल किया तब अर्जुन ने सभी पक्ष वालों के बल का वर्णन करते हुए यह घोषणा की कि वो एक दिन में ही कौरव सेना को नष्ट कर सकते हैं तब बर्बरीक ने कहा कि महात्मा अर्जुन ने जो प्रतिज्ञा की है वह मुझे सही नहीं जाती क्योंकि इनके द्वारा वीरों पर महान आक्षेप हों रहा है अतः अर्जुन और श्रीकृष्ण सहित आपसब लोग चुपचाप खड़े रहे मैं एक ही मुहूर्त में उन सबको यमलोक पहुंचा दूंगा। ऐसा सुनकर सभी लोग विष्मित हों गये अर्जुन भी आक्षेप के कारण लज्जित होकर श्रीकृष्ण को देखने लगें।

तब श्रीकृष्ण ने कहा पार्थ! घटोत्कच्छ पुत्र ने अपनी शक्ति के अनुकूल ही बात कही है तथा उन्होंने बर्बरीक से पूछा कि वत्स तुम किस प्रकार कौरव सेना को इतने कम मूहुर्त में मौत के घाट उतार दोगे तब उसने एक बाण उठाया और उसमें लाल रंग की भष्म भरी तथा उसे छोड़ दिया।उस बाण से जो भष्म गिरा वो दोनों सेनाओं के मर्मस्थलो पर गिरा। केवल पांच पांडव कृपाचार्य और अश्वथामा के शरीर से उसका स्पर्श नहीं हुआ। आप लोगों ने देखा इस बाण से मैंने सभी लोगों के मर्मस्थलो का निरिक्षण किया है.

अब इन्हीं मर्मस्थलो पर मैं दूसरा तीर मारुंगा जिससे ये सभी योद्धा मृत्यु को प्राप्त हो जायेंगे आप सब लोगों को अपने अपने धर्म की सौगंध कदापि शस्त्र धारण ना करें मैं दो घड़ी में अपने तीखे बाण से सबको मौत के घाट उतार दूंगा। यह सुनकर भगवान कुपित हो गये तथा उन्होंने बर्बरीक का सर धड से अलग कर दिया। सबको विष्मय हुआ घटोत्कच्छ तो बेहोश ही हो गया तब अम्बिकाये प्रगट हुई तथा बर्बरीक के वध का कारण बताने लगी श्री कृष्ण ने देवी से कहा कि यह भक्त का मस्तक है इसलिए इसे अमृत से सीचो और राहु की तरह अमर बना दो देवी ने वैसा ही किया तथा जब वह मस्तक जीवित हुआ तब उसने युद्ध देखने की प्रार्थना की तथा इसके बाद उसके मस्तक को वर देकर श्रीकृष्ण ने उसे एक पर्वत पर स्थापित कर दिया।

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