‘बदलता मौसम’ एक छोटी सी मनोरंजक कहानी

दो दोस्त बहुत दिनों बाद मिले, रमेश और सुरेश।

सुरेश: “और सुनाओ रमेश, कैसे हो भाई?”  

रमेश: “मैं अच्छा हूँ सुरेश, तुम सुनाओ?”

सुरेश: “मैं भी बढ़िया हूँ, और बताओ काम धंधा कैसा चल रहा है?”

रमेश: “अपनी तो वही प्राइवेट सैक्टर में नौकरी चल रही है, तुम अपनी सुनाओ।”

सुरेश: “यार, मैं तो एक परफ़ेक्ट बिज़नेस मैन हूँ । मौसम के हिसाब से बिज़नेस बदल लेता हूँ “।

रमेश: “क्या कहा, तुम बार-बार बिज़नेस बदलते रहते हो, मैं कुछ समझा नही “।

सुरेश: “मैं समझाता हूँ, देख भाई जब मई, जून की उमस भरी गर्मी पड़ती है तो मैं गन्ने का जूस बेचने लगता हूँ, और जब जनवरी की कड़कड़ाती- थरथराती सर्दी पड़ती है तो गर्मा-गर्म चाय का स्टाल लगा लेता हूँ। जब बारिश की फुहारें पड़ती है, तो छाते बेचने लगता हूँ । कहीं बाढ़ आ जाए तो नावें सप्लाई करता हूँ, और कहीं सूखा पड़ जाता है तो पानी बेचना शुरु कर देता हूँ। जब चुनाव के मौसम आते है तो में राजनीतिक पार्टियों के झंडे बेचने शुरु कर देता हूँ, और जब क्रिकेट का मौसम आता है तो मैं पॉप कॉर्न बेचने लगता हूँ। 

जब अपराध और घोटालो की खबरे सुर्खियों में होती है, तो अखबार बेचना शुरु कर देता हूँ , और जब अपराधी पकड़े नही जाते, तो इंडिया गेट पर मोमबत्तियाँ बेचना शुरु कर देता हूँ “, सुरेश ने मुस्कुराते हुए अर्थ स्पष्ट किया। रमेश ने उसे झुक कर शत शत नमन किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *