पिप्पलाद ऋषि कौन थे ? पिप्पलाद ऋषि का शनिदेव से क्या संबंध है ?
पिप्पलाद ऋषि महर्षि दधीचि के पुत्र थे। जब दधीचि ने वज्र बनाने के लिये, इंद्रदेव को अपनी अस्थियों का दान कर दिया, तो उनकी गर्भवती पत्नी ने अपने गर्भ को त्याग दिया। और उसे पीपल की जड़ के पास छोड़ कर अपने पति की चिता पर बैठकर सती हो गयी।
बच्चे ने पीपल का फल और गोंद खाकर खुद को जिंदा रखा। बाद में नारदजी की दृष्टि उस बालक पर पड़ी। बालक ने अपना परिचय और अपनी दशा का कारण जानना चाहा, तो नारद जी ने उसके माता पिता का परिचय बताया। और इस दशा का कारण शनि की दृष्टि बताया। साथ ही बालक का नामकरण करके पिप्पलाद नाम दिया।
तब बालक ने शनि को नक्षत्रमण्डल से च्युत होने का श्राप दिया। तत्काल शनिदेव नक्षत्र मण्डल से पतित हो गये। फिर देवताओं की प्रार्थना पर उन्होंने दो वचन लेकर शनिदेव को मुक्त किया। पहला वचन यह कि किशोरावस्था तक किसी बालक पर शनि का प्रभाव न हो। और दूसरा वचन यह कि प्रतिदिन पीपल में जल चढ़ाने वाले पर शनि का प्रभाव न हो।