पितृ दोष के क्या लक्षण हैं तथा इससे मुक्ति पाने के क्या उपाय हैं?

पितृ दोष और पितृ ऋण से पीड़ित कुंडली शापित कुंडली कही जाती है। ऐसे व्यक्ति अपने मातृपक्ष अर्थात माता के अतिरिक्त मामा-मामी मौसा मौसी, नाना-नानी तथा पितृपक्ष अर्थात दादा-दादी, चाचा-चाची, ताऊ-ताई आदि को कष्ट व दुख देता है और उनकी अवहेलना व तिरस्कार करता है।

जन्म पत्री में यदि सूर्य पर शनि राहु-केतु की दृष्टि या युति द्वारा प्रभाव हो तो जातक की कुंडली में पितृ ऋण की स्थिति मानी जाती है। इसके अलावा भी अन्य कई स्थितियां होती है। हालांकि इसके अलावा व्यक्ति अपने कर्मों से भी पितृदोष निर्मित कर लेता है।

विद्वानों ने पितर दोष का संबंध बृहस्पति (गुरु) से बताया है। अगर गुरु ग्रह पर दो बुरे ग्रहों का असर हो तथा गुरु 4-8-12 वें भाव में हो या नीच राशि में हो तथा अंशों द्वारा निर्धन हो तो यह दोष पूर्ण रूप से घटता है और यह पितर दोष पिछले पूर्वज (बाप दादा परदादा) से चला आता है, जो सात पीढ़ियों तक चलता रहता है।

पितृ धर्म को छड़ने या पूर्वजों का अपमान करने आदि से पितृ ऋण बनता है, इस ऋण का दोष आपके बच्चों पर लगता है जो आपको कष्ट देकर इसके प्रति सतर्क करते हैं। पितृ ऋण के कारण व्यक्ति को मान प्रतिष्ठा के अभाव से पीड़ित होने के साथ-साथ संतान की ओर से कष्ट, संतानाभाव, संतान का स्वास्थ्य खराब रहने या संतान का सदैव बुरी संगति में रहने से परेशानी झेलना होती है।

पितर दोष के और भी दुष्परिणाम देखे गए हैं- जैसे कई असाध्य व गंभीर प्रकार का रोग होना। पीढ़ियों से प्राप्त रोग को भुगतना या ऐसे रोग होना जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहे। पितर दोष का प्रभाव घर की स्त्रियों पर भी रहता है।

उपाय

पितृस्‍तोत्र पाठ के बाद अपने पूवजों से सुख, शांति, सफलता की कामना कर अपनी शक्ति के अनुसार ब्राह्मणों, गरीबों को दान देना चाहिए। वेदों में लिखा है कि श्राद्ध में सभी शुभ, और मांगलिक कार्य वर्जित माने गए हैं।

पितृरों का श्राद्ध दोपहर के समय करना चाहिए एंव श्राद में सर्वप्रथम गाय फिर कौआ और अंतिम में कुत्ते का ग्रास निकालना चाहिए। क्‍योंकि यह सभी जीव यमदेवता के बहुत नजदीक माने गए हैं। गाय का ज्‍यादा महत्‍व है क्‍योंकि गाय को वैतरणी पार कराने में सहायक माना जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *