पारिजात का वृक्ष कहाँ है और क्यों प्रशिद्ध है ? जानिए

पारिजात वृक्ष तो पुरे भारत में पाये जाते है, लेकिन किंटूर में पाया जाने वाला यह पारिजात वृक्ष अपने आप कई विशेषताए रखता है और यह अपनी तरह का पुरे भारत में इकलौता पारिजात वृक्ष है। उत्तरप्रदेश के बाराबंकी जिला मुख्यालय से 38 किलोमीटर कि दूरी पर किंटूर गाँव है।

पारिजात वृक्ष तो पुरे भारत में पाये जाते है, लेकिन किंटूर में पाया जाने वाला यह पारिजात वृक्ष अपने आप कई विशेषताए रखता है और यह अपनी तरह का पुरे भारत में इकलौता पारिजात वृक्ष है। उत्तरप्रदेश के बाराबंकी जिला मुख्यालय से 38 किलोमीटर कि दूरी पर किंटूर गाँव है।

इस जगह का नामकरण पाण्डवों कि माता कुन्ती के नाम पर हुआ है। यहाँ पर पाण्डवों ने माता कुन्ती के साथ अपना अज्ञातवास बिताया था। इसी किंटूर गाँव में भारत का एक मात्र पारिजात का पेड़ पाया जाता है। कहते है कि पारिजात के वृक्ष को छूने मात्र से सारी थकान मिट जाती है।

पारिजात वृक्ष के बारे में –
आमतौर पर पारिजात वृक्ष 10 फीट से 25 फीट तक ऊंचे होता है, पर किंटूर में स्तिथ पारिजात वृक्ष लगभग 45 फीट ऊंचा और 50 फीट मोटा है। इस पारिजात वृक्ष कि सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह अपनी तरह का इकलौता पारिजात वृक्ष है, क्योकि इस पारिजात वृक्ष पर बीज नहीं लगते है तथा इस पारिजात वृक्ष कि कलम बोने से भी दूसरा वृक्ष तैयार नहीं होता है।

पारिजात वृक्ष पर जून के आस पास बेहद खूबसूरत सफ़ेद रंग के फूल खिलते है। पारिजात के फूल केवल रात कि खिलते है और सुबह होते ही मुरझा जाते है। इन फूलों का लक्ष्मी पूजन में विशेष महत्तव है। पर एक बात ध्यान रहे कि पारिजात वृक्ष के वे ही फूल पूजा में काम लिए जाते है जो वृक्ष से टूट कर गिर जाते है, वृक्ष से फूल तोड़ने कि मनाही है।

पारिजात वृक्ष का वर्णन हरिवंश पुराण में भी आता है। हरिवंश पुराण में इसे कल्पवृक्ष कहा गया है जिसकी उतपत्ति समुन्द्र मंथन से हुई थी और जिसे इंद्र ने स्वर्गलोक में स्थपित कर दिया था। हरिवंश पुराण के अनुसार इसको छूने मात्र से ही देव नर्त्तकी उर्वशी कि थकान मिट जाती थी।

पारिजात वृक्ष के किंटूर पहुंचने की कहानी
एक बार देवऋषि नारद जब धरती पर कृष्ण से मिलने आये तो अपने साथ पारिजात के सुन्दर पुष्प ले कर आये। उन्होंने वे पुष्प श्री कृष्ण को भेट किये। श्री कृष्ण ने पुष्प साथ बैठी अपनी पत्नी रुक्मणि को दे दिए।

लेकिन जब श्री कृष्ण कि दूसरी पत्नी सत्य भामा को पता चला कि स्वर्ग से आये पारिजात के सारे पुष्प श्री कृष्ण ने रुक्मणि को दे दिए तो उन्हें बहुत क्रोध आया और उन्होंने श्री कृष्ण के सामने जिद पकड़ ली कि उन्हें अपनी वाटिका के लिय पारिजात वृक्ष चाहिए। श्री कृष्ण के लाख समझाने पर भी सत्य भामा नहीं मानी।

सत्यभामा कि ज़िद के आगे झुकते हुए श्री कृष्ण ने अपने दूत को स्वर्ग पारिजात वृक्ष लाने के लिए भेजा पर इंद्र ने पारिजात वृक्ष देने से मना कर दिया। दूत ने जब यह बात आकर श्री कृष्ण को बताई तो उन्होंने स्व्यं ही इंद्र पर आक्रमण कर दिया और इंद्र को पराजित करके पारिजात वृक्ष को जीत लिया।

इससे रुष्ट होकर इंद्र ने पारिजात वृक्ष को फल से वंचित हो जाने का श्राप दे दिया और तभी से पारिजात वृक्ष फल विहीन हो गया। श्री कृष्ण ने पारिजात वृक्ष को ला कर सत्यभामा कि वाटिका में रोपित कर दिया , पर सत्यभामा को सबक सिखाने के लिया ऐसा कर दिया कि जब पारिजात वृक्ष पर पुष्प आते तो गिरते वो रुक्मणि कि वाटिका में। और यही कारण है कि पारिजात के पुष्प वृक्ष के नीचे न गिरकर वृक्ष से दूर गिरते है। इस तरह पारिजात वृक्ष , स्वर्ग से पृथ्वी पर आ गया।

महाभारत काल से किंटूर के पारिजात वृक्ष का संबंध
इसके बाद जब पाण्डवों ने किंटूर में अज्ञातवास किया तो उन्होंने वहाँ माता कुन्ती के लिए भगवन शिव के एक मंदिर कि स्थापना कि जो कि अब कुन्तेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध है। कहते है कि माता कुन्ती पारिजात के पुष्पों से भगवान् शंकर कि पूजा अर्चना कर सके इसलिए पांडवों ने सत्यभामा कि वाटिका से पारिजात वृक्ष को लाकर यहाँ स्थापित कर दिया और तभी से पारिजात वृक्ष यहाँ पर है।

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