पाकिस्तान और हिंदुस्तान के बीच समझौता एक्सप्रेस क्यों चलाई गई थी,जानिए वजह
समझौता एक्सप्रेस भारत और पाकिस्तान के बीच चलने वाली ट्रेन है. भारत में यह ट्रेन दिल्ली से पंजाब स्थित अटारी तक जाती है. अटारी से वाघा बॉर्डर तक तीन किलोमीटर की सीमा पार करती है. इस दौरान बीएसएफ के जवान घोड़ागाड़ी से इसकी निगरानी करते हैं. आगे-आगे चलकर पटरियों की पड़ताड़ भी करते चलते है. सीमा पार करने के बाद यह ट्रेन पाकिस्तान के लाहौर जाती है.
भारत से यह दो बार- बुधवार व रविवार को पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से रात 11.10 बजे निकलती है। इसके लिए पुरानी दिल्ली अलग से प्लेटफॉर्म बनाया गया है. इस ट्रेन में दाखिल होने से पहले गहन पड़ताल के बाद यात्रियों को इस ट्रेन में बिठाया जाता है. समझौता एक्सप्रेस में कुल छह शयनयान और एक वातानुकूलित तृतीय श्रेणी (3rd AC) कोच हैं. दिल्ली से निकलने के बाद अटारी तक बीच में इसका कोई स्टॉपेज नहीं है. बताया जाता है कि इसे भारतीय रेल की राजधानी एक्सप्रेस, शताब्दी एक्सप्रेस व अन्य प्रमुख ट्रेनों के ऊपर तरजीह दी जाती है ताकि इसमें कोई देर ना हो | लाहौर से वापसी के समय समझौता एक्सप्रेस भारत में सोमवार और गुरुवार को पहुंचती है। इस दौरान इस ट्रेन के लोको पायलट और गार्ड नहीं बदले जाते.
समझौता एक्सप्रेस की जरूरत क्यों
भारत और पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति व ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर एक नजर डाला जाए तो इस ट्रेन की जरूरत क्यों है, यह बात स्पष्ट हो जाएगी. भारत-पाकिस्तान और बांग्लादेश साल 1947 तक हिन्दुस्तान नाम के एक ही राष्ट्र हुआ करते थे. देश की आजादी के वक्त भारत-पाकिस्तान विभाजन हुआ. आज भी दिल्ली और लाहौर के लोगों से बात करेंगे तो पता चलेगा कि उनके रिश्तेदार भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों में हैं.
फिर साल 1971 में पूर्वी पाकिस्तान का आजाद मुल्क बांग्लादेश बनना. एशिया के नक्शे में देखेंगे तो पाएंगे कि कभी एक ही मुल्क होने वाले पाकिस्तान व पूर्वी पाकिस्तान के बीच भारत एक पूल है. जब मुल्क आजाद हुआ तब कई परिवारों के लोग दो अलग-अलग देशों के निवासी हो गए. ऐसे में ईद-दीवाली व अन्य कई प्रमुख अवसर पर इन तीनों देशों के लोग सीमाएं लांघकर अपनों के बीच आवागमन करते हैं.
इसक अलावा भारत-पाकिस्तान, दोनों ही देशों के बीच भारी मात्रा में खाद्य पदार्थ व अन्य कई तरह के व्यापार होते हैं. हाल ही में टमाटर के निर्यात के मामला काफी चर्चा में रहा. ये पदार्थ कई बार समझौता एक्सप्रेस के जरिए ही इधर से ऊधर और उधर से इधर लाए जाते हैं.
समझौता एक्सप्रेस का इतिहास
समझौता एक्सप्रेस का इतिहास 43 साल पुराना है. इसकी नींव 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद हुए दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हुए शिमला समझौता में पड़ी. दोनों देशों ने आपस में फिर से रेल सेवा को बहाल करने पर सहमति जताई.
असल में भारत-पाक के बीच पहले रेल सेवा थी. समझौता एक्सप्रेस से ज्यादा व्यापक थी. लेकिन 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान सेना के जवानों ने रेल की पटरियां उखाड़ फेंकी थीं.
ऐसे में समझौता एक्सप्रेस को 22 जुलाई 1976 को अटारी-लाहौर के बीच शुरू करने का फैसला किया गया. शुरुआत में इसे रोज चलाया जाता था. लेकिन साल 1994 में इसके संचालन को हफ्ते में दो दिन ही कर दिया गया. शुरुआत में ये ट्रेन संचालन के दिन ही भारत भी लौट आती थी, लेकिन वर्तमान में यह अगले दिन भारत लौटती है |