पलाश के पौधे की क्या विशेषता है?

रूप यौवन सम्पन्ना : विशाल कुल सम्भवा :।

विद्याहीना: न शोभन्ते , निर्गन्धा: एव किंशुका: ।।

पलाश , ढाक ,टेसू, किंशुक ये सारे नाम एक ही वृक्ष के हैं । प्राचीन काल से इसकी सुंदरता मनुष्य को आकर्षित करती रही है ।

इसके पुष्पों की मनमोहिनी छवि ने आदिकाल से कवियों का मन मोहा है ।लेकिन प्रकृति ने एक अत्याचार जो इसपर किया , इतने सुंदर पुष्पों को गन्धविहीन कर , उसके लिए स्रष्टा से जितनी भी शिकायत करें , कम है।

छिद्रान्वेषी मानसिकता के संस्कृत साहित्यकार ने तो यहाँ तक कह दिया — ” भले ही व्यक्ति रूप- यौवन सम्पन्न हो , उच्च कुल से सम्बंध रखता हो ; परन्तु अगर वो विद्याहीन है , यानी अशिक्षित है , तो वह निर्गन्ध पलाश के फूल की तरह शोभा नहीं देता ।”

पलाश पुष्प में गन्ध न होने के कारण यह ईश्वर की पूजा में प्रयोग नहीं होता ।परन्तु चैत्र माह के आरम्भ में पत्रविहीन त्रिभंगी मुद्रा में खड़े वृक्ष पुष्पों के रक्तिम आभरण पहने पूरे वनप्रांत को अपूर्व शोभा प्रदान करते हैं । इसे ‘जंगल की आग’ कहना अतिश्योक्ति नहीं ।

पलाश का वृक्ष बहुत ऊँचा नहीं होता, मझोले आकार का टेढ़ा – मेढ़ा होता है।प्राचीन काल ही से होली के रंग इसके फूलों से तैयार किये जाते रहे हैं। इसका फूल छोटा, अर्धचंद्राकार और गहरा लाल होता है। फूल फाल्गुन के अंत और चैत्र के आरंभ में लगते हैं। फूल झड़ जाने पर चौड़ी चौड़ी फलियाँ लगती है जिनमें गोल और चिपटे बीज होते हैं।
पलाश के पत्ते प्राय: पत्तल और दोने आदि के बनाने के काम आते हैं।

फूल और बीज औषधिरूप में व्यवहार किये जाते हैं।

बीज में पेट के कीड़ों को दूर करने का गुण होता है। फूल को उबालकर रंग निकाला जाता है । फली का चूर्ण कर अबीर बनाया जाता है । जिनका खासकर होली के अवसर पर व्यवहार किया जाता है।

जड़ की छाल से रेशा निकलता है उसकी रस्सियाँ बटी जाती हैं। दरी और कागज भी इससे बनाया जाता है। इसकी पतली डालियों को उबालकर एक प्रकार का कत्था तैयार किया जाता है जो कुछ घटिया होता है और बंगाल में अधिक खाया जाता है।

मोटी डालियों और तनों को जलाकर कोयला तैयार करते हैं।

आयुर्वेद में इसके फूल को स्वादु, कड़वा, गरम, कसैला, वातवर्धक ,शीतज, चरपरा, मलरोधक तृषा, दाह, पित्त , कफ, रुधिरविकार, कुष्ठ और मूत्रकृच्छ का नाशक कहा गया है।

फल को रूखा, हलका गरम, पाक में चरपरा, कफ, वात, उदररोग, कृमि, कुष्ठ,प्रमेह, बवासीर और शूल का नाशक कहा गया है।

बीज स्निग्ध , चरपरा, गरम, कफ और कृमि का नाशक है।
यह वृक्ष आदिकाल से प्रसिद्ध वृक्षों में से हैं।

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